मंगलवार, 28 अगस्त 2018

584. कम्फर्ट ज़ोन

कम्फर्ट ज़ोन  
 
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कम्फ़र्ट ज़ोन के अन्दर    
तमाम सुविधाओं के बीच   
तमाम विडम्बनाओं के बीच   
सुख का मुखौटा ओढ़े   
शनैः-शनैः बीत जाता है, रसहीन जीवन   
हासिल होता है, महज़ रोटी, कपड़ा, मकान   
बेरंग मौसम और रिश्तों की भरमार। 
   
कम्फर्ट ज़ोन के अन्दर 
नहीं होती है कोई मंज़िल    
अगर है, तो पराई है मंज़िल।
   
कम्फर्ट ज़ोन से बाहर   
अथाह परेशानियाँ मगर असीम सम्भावनाएँ    
अनेक पराजय मगर स्व-अनुभव   
अबूझ डगर मगर रंगीन मौसम   
असह्य संग्राम मगर अक्षुण्ण आशाएँ   
अपरिचित दुनिया मगर बेपनाह मुहब्बत   
अँधेरी राहें मगर स्पष्ट मंज़िल। 
  
बेहद कठिन है फ़ैसला लेना   
क्या उचित है? 
अपनी मंज़िल या कम्फर्ट ज़ोन। 

-जेन्नी शबनम (28.8.2018)   
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शनिवार, 18 अगस्त 2018

583. खिड़की स्तब्ध है

खिड़की स्तब्ध है

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खिड़की, महज़ एक खिड़की नहीं   
वह एक एहसास है, संभावना है   
भीतर और बाहर के बीच का भेद   
वह बख़ूबी जानती है   
इस पार छुपा हुआ संसार है   
जहाँ की आवोहवा मौन है   
उस पार विस्तृत संसार है   
जहाँ बहुत कुछ मनभावन है   
खिड़की असमंजस में है   
खिड़की सशंकित है   
कैसे पाट सकेगी   
कैसे भाँप सकेगी   
दोनों संसार को   
एक जानदार है   
एक बेजान है,   
खिड़की स्तब्ध है!   

- जेन्नी शबनम (18. 8. 2018)
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बुधवार, 15 अगस्त 2018

582. सिंहनाद करो

सिंहनाद करो  
 
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व्यर्थ लगता है   
शब्दों में समेटकर 
हिम्मत में लपेटकर 
अपनी संवेदनाओं को अभिव्यक्त करना। 
 
हम जिसे अपनी आज़ादी कहते हैं 
हम जिसे अपना अधिकार मानते हैं 
सुकून से दरवाज़े के भीतर 
देश की दुर्व्यवस्था पर 
देश और सरकार को कोसते हैं 
अपनी ख़ुशनसीबी पर 
अभिमान करते हैं कि हम सकुशल हैं। 
 
यह भ्रम जाने किस वक़्त टूटे   
असंवेदनशीलता का क़हर   
जाने कब धड़धड़ाता हुआ आए   
हमारे शरीर और आत्मा को छिन्न-भिन्न कर जाए। 

ज्ञानी-महात्मा कहते हैं  
सब व्यर्थ है 
जग मोह है, माया है, क्षणभंगुर है  
फिर तो व्यर्थ है हमारी सोच 
व्यर्थ है हमारी अभिलाषाएँ 
जो हो रहा है, होने दो 
नदी के साथ बहते जाओ 
आज़ादी हमारा अधिकार नहीं 
बस जीते जाओ, जीते जाओ। 
   
यही वक़्त है   
ख़ुद से अब साक्षात्कार करो 
सारे क़हर आत्मसात करो 
या फिर सिंहनाद करो।

-जेन्नी शबनम (15.8.2018)   
(स्वतंत्रता दिवस)
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रविवार, 5 अगस्त 2018

581. अनछुई-सी नज़्म (क्षणिका)

अनछुई-सी नज़्म   

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कुछ कहो कि सन्नाटा भाग जाए   
चुप्पियों को लाज आ जाए   
अँधेरों की तक़दीर में भर दो रोशनाई से रंग   
कि छप जाए रंगों भरी ग़ज़ल   
और सदके में झुक जाए मेरी अनछुई-सी नज़्म।     

- जेन्नी शबनम (5. 8. 2018)
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