शनिवार, 5 मार्च 2011

215. और कर ली पूरी मुराद

और कर ली पूरी मुराद

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वक़्त से माँग लायी
अपने लिए कुछ चोरी के लम्हात
मन किया जी लूँ ज़रा बेफ़िक्र
पा लूँ कुछ अनोखे एहसास

कम नहीं होता
किसी का साथ
प्यारी बातें
एक ख़ुशनुमा शाम
जो बन जाए तमाम उम्र केलिए
एक हसीन याद

हाथों में हाथ 
और तीन क़दमों में
नाप ली दुनिया हमने
और कर ली पूरी मुराद

जानती हूँ
यह कोई नयी बात नहीं
न होती है परखने की बात
पर पहली बार
दुनिया ने नहीं
मैंने परखा है दुनिया को

अपनी आँखों से देखती थी
पर आज देखी
किसी और की नज़रों से
अपनी ज़िन्दगी

पहले भी क्या ऐसी ही थी दुनिया?
पहले भी फूल तो खिले होते थे 
पर मुरझाए ही
मैं क्यों बटोरती थी?

क्या ये ग़ैर वाज़िब था?
कैसे मानूँ?
कहकर तो लाई थी वक़्त को
परवाह क्यों?
जब वक़्त को रंज नहीं!

- जेन्नी शबनम (27. 02. 2011)
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