बुधवार, 12 दिसंबर 2012

376. कहो ज़िन्दगी (पुस्तक 95)

कहो ज़िन्दगी

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कहो ज़िन्दगी 
आज का क्या संदेश है 
किस पथ पे जाना शुभ है
किन राहों पे अशुभ घड़ी का दोष है?
कहो ज़िन्दगी   
आज कौन-सा दिन है
सोम है या शनि है
उजालों का राज है या, अँधेरों का मायाजाल है
स्वप्न और दुःस्वप्न का, क्या आपसी क़रार है?
कहो ज़िन्दगी  
अभी कौन-सा पहर है, सुबह है या रात है
या कि ढलान पर उतरती 
ज़िन्दगी की आख़िरी पदचाप है?
अपनी कसी मुट्ठियों में, टूटते भरोसे की टीस 
किससे छुपा रही हो?
मालूम तो है, यह संसार पहुँच से दूर है 
फिर क्यों चुप हो, अशांत हो?
अनभिज्ञ नहीं तुम 
फिर भी लगता है, जाने क्यों 
तुम्हारी ख़ुद से, नहीं कोई पहचान है 
कहों ज़िन्दगी  
क्या यही हो तुम?
सवाल दागती, सवालों में घिरी 
ख़ुद सवाल बन, अपने जवाब तलाशती 
सारे जवाब ज़ाहिर हैं, फिर भी 
पूछने का मन है- 
कहो ज़िन्दगी तुम्हारा कैसा हाल है?

- जेन्नी शबनम (12. 12. 2012)
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