कैसा लगता होगा
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कैसा लगता होगा
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कैसा लगता होगा
जब किसी घर में
अम्मा-बाबा संग
अम्मा-बाबा संग
बिटिया रहती है
कैसा लगता होगा
जब अम्मा कौर-कौर
बिटिया को खिलाती है
कैसा लगता होगा
जब बाबा की गोद में
कैसा लगता होगा
जब बाबा की गोद में
बिटिया इतराती है।
क्या जानूँ वो एहसास
जाने कैसा लगता होगा
पर सोचती हूँ हमेशा
बड़ा प्यारा लगता होगा
अम्मा-बाबा की बिटिया का
सब कुछ वहाँ कितना
अपना-अपना-सा होता होगा।
बहुत मन करता है
एक छोटी बच्ची बन जाऊँ
ख़ूब दौडूँ-उछलूँ-नाचूँ
बेफ़िक्र हो शरारत करूँ
ज़रा-सी चोट पर
अम्मा-बाबा की गोद में
जा चिपक उनको चिढ़ाऊँ।
सोचती हूँ
अगर ये चमत्कार हुआ तो
बन भी जाऊँ बच्ची तो
अम्मा-बाबा कहाँ से लाऊँ?
जाने कैसे थे, कहाँ गए वो?
कोई नहीं बताता, क्यों छोड़ गए वो?
यहाँ सब यतीम
कौन किसको समझाए
आज तो बहुत मिला प्यार सबका
रोज़-रोज़ कौन जतलाए
यही है जीवन
समझ में अब आ ही जाए।
न मैं बच्ची बनी
न बनूँगी किसी की अपनी
हर शब यूँ ही तन्हा
इसी दर पर गुज़र जाएगी
रहम से देखती आँखें सबकी
मेरी ख़ाली हथेली की दुआ ले जाएगी।
- जेन्नी शबनम (14. 11. 2010)
(बाल दिवस पर एक यतीम बालिका की मनोदशा)
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न मैं बच्ची बनी
न बनूँगी किसी की अपनी
हर शब यूँ ही तन्हा
इसी दर पर गुज़र जाएगी
रहम से देखती आँखें सबकी
मेरी ख़ाली हथेली की दुआ ले जाएगी।
- जेन्नी शबनम (14. 11. 2010)
(बाल दिवस पर एक यतीम बालिका की मनोदशा)
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