कश
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"मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया
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"मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुँए में उड़ाता चला गया"
रफी साहब ने गा दिया
देवानंद ने चित्रपट पर निभा दिया
पर मैं? मैं क्या करूँ?
कैसे जियूँ? कैसे मरुँ?
- जेन्नी शबनम (31. 8. 2019)
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रफी साहब ने गा दिया
देवानंद ने चित्रपट पर निभा दिया
पर मैं? मैं क्या करूँ?
कैसे जियूँ? कैसे मरुँ?
हर कश में एक-एक फ़िक्र को फेंकती हूँ
मैं ऐसे ही मेरे ज़ख़्मों को सेंकती हूँ
मैं ऐसे ही मेरे ज़ख़्मों को सेंकती हूँ
मेरी फ़िक्र तो धुँए के छल्ले के साथ
मेरे पास लौट आती है
जाने क्यों धुएँ के साथ आसमान में नहीं जाती है
मेरी ज़िन्दगी का साथी है फ़िक्र
और फ़िक्र को भगाने का जरिया है
जलती सिगरेट और धुँए का जो छल्ला है
जो बादलों-सा होठों से निकलता है
हवाओं में गुम होकर मेरे पास लौटता है
साँस लेने का सबब भी है और साँस लेने से रोकता है
हाँ मालूम है हर छल्ले के साथ
मेरे पास लौट आती है
जाने क्यों धुएँ के साथ आसमान में नहीं जाती है
मेरी ज़िन्दगी का साथी है फ़िक्र
और फ़िक्र को भगाने का जरिया है
जलती सिगरेट और धुँए का जो छल्ला है
जो बादलों-सा होठों से निकलता है
हवाओं में गुम होकर मेरे पास लौटता है
साँस लेने का सबब भी है और साँस लेने से रोकता है
हाँ मालूम है हर छल्ले के साथ
वक़्त और उम्र का चक्र भी घूम रहा है
मुझे नशा नहीं हुआ और लम्हा-लम्हा झूम रहा है
मुझे नशा नहीं हुआ और लम्हा-लम्हा झूम रहा है
जल्दी ही धुआँ लील लेगा मेरी ज़िन्दगी
ज़िन्दगी लम्बी न सही छोटी सही
हर साँस में नई कसौटी सही
ज़िन्दगी लम्बी न सही छोटी सही
हर साँस में नई कसौटी सही
मैं हर फ़िक्र को धुँए में समेट बुलाती रही
इस तरह ज़िन्दगी का साथ निभाती रही।
इस तरह ज़िन्दगी का साथ निभाती रही।
- जेन्नी शबनम (31. 8. 2019)
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