वापस अपने घर
***
अरसे बाद
ख़ुद के साथ वक़्त बीत रहा है
यों लगता है जैसे बहुत दूर से चलकर आए हैं
सदियों बाद वापस अपने घर।
उफ़! कितना कठिन था सफ़र
रास्ते में हज़ारों बन्धन
कहीं कामनाओं का ज्वारभाटा
कहीं भावनाओं की अनदेखी दीवार
कहीं छलावे की चकाचौंध रोशनी
इन सबसे बहकता, घबराता
बार-बार घायल होता मन
जो बार-बार हारता
लेकिन ज़िद पर अड़ा रहता
और हर बार नए सिरे से
सुकून तलाशता फिरता।
बहुत कठिन था, अडिग होना
इन सबसे पार जाना
उन कुण्ठाओं से बाहर निकलना
जो जन्म से ही विरासत में मिलती हैं
सारे बन्धनों को तोड़ना
जिसने आत्मा को जकड़ रखा था
ख़ुद को तलाशना, ख़ुद को वापस लाना
ख़ुद में ठहरना।
पर एक बार
एक बड़ा हौसला, एक बड़ा फ़ैसला
अन्तर्द्वन्द्व के विस्फोट का सामना
ख़ुद को समझने का साहस
फिर हर भटकाव से मुक्ति
फिर हर भटकाव से मुक्ति
अंततः अपने घर वापसी।
अब ज़रा-ज़रा-सी कसक
हल्की-हल्की-सी टीस
मगर कोई उद्विग्नता नहीं
कोई पछतावा नहीं
सब कुछ शान्त, स्थिर।
पर हाँ!
इन सब में जीने के लिए उम्र और वक़्त
हाथ से दोनों ही निकल गए।
-जेन्नी शबनम (28.7.2013)
___________________