रविवार, 18 अप्रैल 2021

717. प्रेम में होना

प्रेम में होना   

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प्रेम की पराकाष्ठा कहाँ तक   
बदन के घेरों में या मन के फेरों में?   
सुध-बुध बिसरा देना प्रेम है   
या स्वयं का बोध होना प्रेम है।
   
अनकहा प्रेम भी होता है   
न मिलाप, न अधिकार   
पर प्रेम है कि बहता रहता है   
अविरल और अविचलित।
    
प्रेम की परिभाषाएँ ढेरों गढ़ी गईं   
पर सबसे सटीक कोई नहीं   
अपने-अपने मन की आस्था   
अपने-अपने प्रेम की अवस्था। 
  
प्रेम अक्सर पा तो लिया जाता है   
पर वह लेन-देन तक सिमट जाता है   
हम सभी भूल गए हैं प्रेम का अर्थ   
लालसा में भटकता जीवन है व्यर्थ  
प्रेम का मूल तत्त्व बिसर गया है   
स्वार्थ की परिधि में प्रेम बिखर गया है। 
   
प्रेम पाया नहीं जाता 
प्रेम जबरन नहीं होता   
प्रेम किया नहीं जाता 
प्रेम में रहा जाता है   
प्रेम जीवन है   
प्रेम जिया जाता है।  

-जेन्नी शबनम (18.4.2021)
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