शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

443. बेपरवाह मौसम

बेपरवाह मौसम

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कुछ मौसम   
जाने कितने बेपरवाह हुआ करते हैं   
बिना हाल पूछे, चुपके से गुज़र जाते हैं   
भले ही मैं उसकी ज़रूरतमंद होऊँ   
भले ही मैं आहत होऊँ,   
कुछ मौसम   
शूल से चुभ जाते हैं 
और मन की देहरी पर 
साँकल-से लटक जाते हैं   
हवा के हर एक हल्के झोंके से   
साँकल बज उठती है   
जैसे याद दिलाती हो, कहीं कोई नहीं,   
दूर तक फैले बियाबान में   
जैसे बिन मौसम बरसात शुरू हो   
कुछ वैसे ही   
मौसम की चेतावनी   
मन की घबराहट और कुछ पीर   
आँखों से बह जाती हैं   
कुछ ज़ख़्म और गहरे हो जाते हैं,   
फिर सन्नाटा   
जैसे हवाओं ने सदा के लिए   
अपना रुख़ मोड़ लिया हो   
और जिसे इधर देखना भी   
अब गँवारा नहीं।   

- जेन्नी शबनम (8. 2. 2014) 
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गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

442. वसंत ऋतु (वसंत ऋतु पर 4 हाइकु) पुस्तक - 51

वसंत ऋतु

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1.
हवा बसंती 
उड़ाकर ले गई 
सोच ठिठुरी।  

2. 
बसंती फूल 
चहुँ ओर हैं खिले 
ऋतु ने दिए।  

3. 
वसंत आया
ठंड से था सिकुड़ा
तिमिर भागा। 

4.
उजले पीले
बसंत ने बिखेरे  
रंग अनोखे। 

- जेन्नी शबनम (4. 2. 2014)
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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

441. हे श्वेताम्बरा (सरस्वती पूजा पर 3 हाइकु) पुस्तक - 50

हे श्वेताम्बरा  

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1.
ज्ञान विवेक,
हे श्वेताम्बरा आओ
जगत को दो। 

2.
पीली धरती
अगवानी करती
माँ शारदा की। 

3.
ज्ञान का वर 
देती विद्यादायिनी 
हंसवाहिनी। 

- जेन्नी शबनम (3. 2. 2014)
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