प्रलय
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नहीं मालूम कौन ले गया रोटी और सपनों को
सिरहाने की नींद और तन के ठौर को
राह दिखाते ध्रुव तारे और दिन के उजाले को
मन की छाँव और अपनों के गाँव को,
धधकती धरती और दहकता सूरज
बौखलाई नदी और चीखता मौसम
बाट जोह रहा है, मेरे पिघलने और बिखरने का
मैं ढहूँ तो एक बात हो, मैं मिटूँ तो कोई बात हो।
- जेन्नी शबनम (24. 8. 2016)
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