यह कविता है
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मन की अनुभूति
ज़रा-ज़रा जमती, ज़रा-ज़रा उगतीज़रा-ज़रा सिमटती, ज़रा-ज़रा बिखरती
मन की परछाई बन एक रूप है धरती
मन के व्याकरण से मन की स्लेट पर
मन की खल्ली से जोड़-जोड़कर कुछ हर्फ़ है गढ़ती
नहीं मालूम इस अभिव्यक्ति की भाषा
नहीं मालूम इसकी परिभाषा
सुना है, यह कविता है।
- जेन्नी शबनम (21. 3. 2013)
(विश्व कविता दिवस पर)
(विश्व कविता दिवस पर)
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