जादूगर
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तुम्हारा सबसे ख़ास
मेरा प्रिय जादू दिखाओ न!
जानती हूँ
तुम्हारी काया जीर्ण हो चुकी है
और अब मैं
ज़िन्दगी और जादू को समझने लगी हूँ
फिर भी मेरा मन है
एक बार और तुम मेरे जादूगर बन जाओ
और मैं तुम्हारे जादू में
अपना रोना भूल
एक आख़िरी बार खिल जाऊँ।
तुम्हें याद है
जब तुम मेरे बालों से टॉफ़ी निकालकर
मेरी हथेली पर रख देते थे
मैं झट से खा लेती थी
कहीं जादू की टॉफ़ी ग़ायब न हो जाए
कभी तुम मेरी जेब से
कुछ सिक्के निकाल देते थे
मैं हत्प्रभ
झट मुट्ठी बंद कर लेती थी
कहीं जादू के सिक्के ग़ायब न हो जाए
और मैं ढेर सारे गुब्बारे न खरीद पाऊँ।
मेरे मन के ख़िलाफ़
जब भी कोई बात हो
मैं रोने लगती और तुम पुचकारते हुए
मेरी आँखें बंदकर जादू करते
जाने क्या-क्या बोलते
सुनकर हँसी आ ही जाती थी
और मैं खिसियाकर तुम्हें मुक्के मारने लगती
तुम कहते-
बिल्ली झपट्टा मारी
बिल्ली झपट्टा मारी
मैं कहती-
तुम चूहा हो
तुम कहते-
तुम बिल्ली हो
एक घमासान, फिर तुम्हारा जादू
वही टॉफ़ी, वही सिक्के।
जानती हूँ
तुम्हारा जादू, सिर्फ़ मेरे लिए था
तुम सिर्फ़ मेरे जादूगर थे
मेरी हँसी मेरी ख़ुशी
यही तो था तुम्हारा जादू।
ओ जादूगर!
एक आख़िरी जादू दिखाओ न!
- जेन्नी शबनम (18. 7. 2013)
(पिता की पुण्यतिथि)
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