गुरुवार, 13 अगस्त 2020

680. विदा (क्षणिका)

विदा 

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उम्र के बेहिसाब लम्हे, जाने कैसे ख़र्च हो गए    
बदले में मिले ज़िन्दगी के छल   
एकांत के अनेक कठोर पल   
जब न सुनने वाला कोई, न समझाने वाला कोई   
न पास आने वाला, न दूर जाने वाला कोई   
न संगी, न साथी, न रिश्ते, न रिश्तेदारी   
अपनी नीरवता में ख़ुद के साथ   
सिमटे हुए दोनों खुले हाथ   
और यूँ धीरे-धीरे विदा हो रही ज़िन्दगी।   

- जेन्नी शबनम (12. 8. 2020) 
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