चकमा
चलो आओ, हाथ थामो मेरा, मुट्ठी जोर से पकड़ो
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वहाँ तक साथ चलो, जहाँ ज़मीन-आसमान मिलते हैं
वहाँ से सीधे नीचे छलाँग लगा लेते हैं
आज वक़्त को चकमा दे ही देते हैं।
- जेन्नी शबनम (31. 1. 2013)
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12 टिप्पणियां:
हम चकमा खाने में विशवास रखते है ,देने में नहीं. -प्रस्तुति अच्छी है.
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बहुत खूब |
वक्त को चकमा देना मुश्किल ही नही नामुमकिन है,,,
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वाह....
क्या कहने....
काश कि हम ऐसा कर पाते..ये वक्त बड़ा सियाना है..
अनु
अरे वाह! जेन्नी जी.
वक्त को चकमा देने का आपका यह अंदाज तो निराला है.अब तो जोर से आपका हाथ थामे रखना पड़ेगा.
नही तो वक्त ही चकमा देता रहेगा जी.
जो वक्त हमेशा चकमा देता है उसे ही चकमा .. बात कुछ अलग है.
:) तैयार हो ? नहीं तो हो जाओ वरना वक़्त चकमा देने में सोचता भी नहीं
बहुत सुन्दर...प्रेमपूर्ण रचना...
:-)
गजब की चाहत इम्तहान की हद कर दी निःशब्द
भावों से नाजुक शब्द..
जीवन के सही रूप को दर्शाती
बहुत कहीं गहरे तक उतरती ------बधाई
vkt deta sath to mai vkt ki chule hila deta,chakma dene ki behtareen khwhish,sundar srijan,badhayee
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