खिड़की मर गई है
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खिड़की बंद हो गई, वह बाहर नहीं झाँकती
आसमान और ताज़ी हवा से नाता टूट गया
सूरज दिखता नही पेड़ पौधे ओट में चले गए
बेचारी खिड़की उमस से लथपथ घुट रही है
मानव को कोस रही है
खिड़की अब अँधेरों से भी नाता तोड़ चुकी है
खिड़की सदा के लिए बंद हो गई है
गोया खिड़की मर गई है।
- जेन्नी शबनम (2. 8. 2016)
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5 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 04 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
महानगर की व्यथा... मुझे तो लगता है कि खिडकी मारी नहीं, उसने खुदकुशी कर ली है!!
बहुत सुन्दर ।
खिड़की के माध्यम से उस कमरे में बंद नारी की घुटन बख़ूबीबयॉंहुई है। बहुत सुंदर।
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