मंगलवार, 2 अगस्त 2016

521. खिड़की मर गई है (क्षणिका)

खिड़की मर गई है 

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खिड़की बंद हो गई, वह बाहर नहीं झाँकती
आसमान और ताज़ी हवा से नाता टूट गया  
सूरज दिखता नही पेड़ पौधे ओट में चले गए
बेचारी खिड़की उमस से लथपथ घुट रही है
मानव को कोस रही है
खिड़की अब अँधेरों से भी नाता तोड़ चुकी है
खिड़की सदा के लिए बंद हो गई है  
गोया खिड़की मर गई है।  

- जेन्नी शबनम (2. 8. 2016)
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5 टिप्‍पणियां:

Amitabh Satyam ने कहा…

बहुत सुन्दर।

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 04 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

महानगर की व्यथा... मुझे तो लगता है कि खिडकी मारी नहीं, उसने खुदकुशी कर ली है!!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुन्दर ।

Asha Joglekar ने कहा…

खिड़की के माध्यम से उस कमरे में बंद नारी की घुटन बख़ूबीबयॉंहुई है। बहुत सुंदर।