यूँ ही चलने दो, यूँ ही जीने दो
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ये क्या कह रहे हो?
सब जानते तो हो तुम
विध्वंस क्यों लाना चाहते हो?
मृग-मरीचिका-सा न भटको तुम
स्वर्ण-हिरण की चाह में न उलझाओ मुझको
एक ही महाभारत काफ़ी है, दूसरा न रचाओ तु।
मेरे होंठों के कम्पन को आवाज़ देना चाहते हो
साँसों की थरथराहट को गति देना चाहते हो
मेरे सोये सपनों को आसमान देना चाहते हो।
जानते हो न, मेरे तुम्हारे बीच सदियों का फ़ासला है
मीलों की नहीं जन्मों की खाई है
जन्म और मृत्यु का-सा पड़ाव है।
तुम्हारे आवेश से ज़िन्दगी जल जाएगी
या जाने तुम्हारी ज्वाला तूफ़ान लाएगी
नई ज़िन्दगी शायद मिले, पर दुनिया मिट जाएगी।
मेरी मूक चाहत को बेआवाज़ ज़ब्त कर लो तुम
मेरा अवलम्ब बन जाओ
मेरी ख़्वाहिशों को जी जाओ तुम।
मेरी ज़मीन तुम्हारा आसमान
मेरे सपने तुम्हारी हक़ीकत
यूँ ही चलने दो, यूँ ही जीने दो।
- जेन्नी शबनम (21. 1. 2009)
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ये क्या कह रहे हो?
सब जानते तो हो तुम
विध्वंस क्यों लाना चाहते हो?
मृग-मरीचिका-सा न भटको तुम
स्वर्ण-हिरण की चाह में न उलझाओ मुझको
एक ही महाभारत काफ़ी है, दूसरा न रचाओ तु।
मेरे होंठों के कम्पन को आवाज़ देना चाहते हो
साँसों की थरथराहट को गति देना चाहते हो
मेरे सोये सपनों को आसमान देना चाहते हो।
जानते हो न, मेरे तुम्हारे बीच सदियों का फ़ासला है
मीलों की नहीं जन्मों की खाई है
जन्म और मृत्यु का-सा पड़ाव है।
तुम्हारे आवेश से ज़िन्दगी जल जाएगी
या जाने तुम्हारी ज्वाला तूफ़ान लाएगी
नई ज़िन्दगी शायद मिले, पर दुनिया मिट जाएगी।
मेरी मूक चाहत को बेआवाज़ ज़ब्त कर लो तुम
मेरा अवलम्ब बन जाओ
मेरी ख़्वाहिशों को जी जाओ तुम।
मेरी ज़मीन तुम्हारा आसमान
मेरे सपने तुम्हारी हक़ीकत
यूँ ही चलने दो, यूँ ही जीने दो।
- जेन्नी शबनम (21. 1. 2009)
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Yun Hi Chalne Do, Yun Hi Jine Do
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ye kya kah rahe ho?
sab jaante to ho tum
vidhwans kyon laana chaahte ho?
mrig-marichika-sa na bhatko tum
swarn-hiran kee chaah mein na uljhaao mujhko
ek hi mahabhaarat kaafi hai, dusra na rachaao tum.
mere honthon ke kampan ko aawaz dena chaahte ho
saanson kee thartharaahat ko gati dena chahte ho
mere soye sapnon ko aasmaan dena chaahte ho.
jaante ho na, mere tumhaare beech sadiyon ka fasla hai
meelon ki nahin janmon ki khaai hai
janm aur mrityu ka-sa padaav hai.
tumhaare aavesh se zindgi jal jaayegi
ya jaane tumhaari jwaala toofaan laayegi
nayee zindgi shaayad mile, par duniya mit jaayegi.
meri mook chaahat ko beaawaaz zabt kar lo tum
mera awlamb ban jaao
meri khwaahishon ko ji jaao tum.
meri zameen tumhaara aasmaan
mere sapne tumhaaree haqikat
yun hi chalne do, yun hi jine do.
- Jenny Shabnam (21. 1. 2009)
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1 टिप्पणी:
asaan shabdon main badi baat keh jaati haIN JENNY ,ye kavita sabki kavita hai,is waqt jabki tamam mahilla kavi shabdon ke makadjaal ka tana bana prastut karke paathkon ko digbhramit kar rahi hain ,sidhi saadhi bhasa main jeevan ke khatte meethe palon ko uker kar aapne nisandeh sarahniya kaam kiya hai
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