मेरी आज़माइश करते हो
***
ग़ैरों के सामने इश्क़ की नुमाइश करते हो
क्यों भला ज़िन्दगी की फ़रमाइश करते हो।
इश्क़ करते नहीं ईमान से तुम कभी
और ख़ुद ही उस ख़ुदा से नालिश करते हो।
ग़ैरों की जमात के तुम मुसाफ़िर हो
अपनों में आशियाँ की गुंजाइश करते हो।
***
ग़ैरों के सामने इश्क़ की नुमाइश करते हो
क्यों भला ज़िन्दगी की फ़रमाइश करते हो।
इश्क़ करते नहीं ईमान से तुम कभी
और ख़ुद ही उस ख़ुदा से नालिश करते हो।
ग़ैरों की जमात के तुम मुसाफ़िर हो
अपनों में आशियाँ की गुंजाइश करते हो।
ज़ख़्म गहरा देते हो हर मुलाक़ात के बाद
और फिर भी मिलने की गुज़ारिश करते हो।
इक पहर का साथ तो मुमकिन नहीं
मुक़म्मल ज़िन्दगी की ख़्वाहिश करते हो।
तुम्हें तो आदत है बेवफ़ाई करने की
और 'शब' की वफ़ा की आज़माइश करते हो।
-जेन्नी शबनम (16. 2. 2009)
_____________________
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें