किसी कोख में नहीं जाऊँगी माँ
***
अब तक न जाने कितने कोख से जबरन छीनी गई
जीवन जीने की तमन्ना, हर बार बेबस कुचली गई
जानती हूँ, बस थोड़ी देर हूँ कोख में तुम्हारी माँ
आज एक बार फिर, बेदर्दी से मारी जाऊँगी माँ।
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अब तक न जाने कितने कोख से जबरन छीनी गई
जीवन जीने की तमन्ना, हर बार बेबस कुचली गई
जानती हूँ, बस थोड़ी देर हूँ कोख में तुम्हारी माँ
आज एक बार फिर, बेदर्दी से मारी जाऊँगी माँ।
माँ! जानती हो, तुम्हारी कोख में पहले भी मैं ही आई थी
दोनों बार तुम्हारी लाचारी और समाज की क्रूरता भोगी थी
ज़िद थी, तुम्हारी कोख से जन्म लूँ, इसलिए आती थी
शायद तुम्हारी तरह मैं भी सुन्दर बनना चाहती थी।
माँ! जानती हो, इस घर में तुमसे भी पहले मैं आना चाहती थी
किसी दूसरी माँ के गर्भ में समा, इस घर में पनाह चाहती थी
बाबा की बुज़दिली और धर्म-परम्परा के नाम पर बलि चढ़ी थी
उस बिनब्याही कलंकित माँ के साथ, मैं भी जलकर मरी थी।
माँ! देखो न! बाबा की वही कायरता, वही पौरुष-दम्भ
मैं क़त्ल होऊँगी और तुम एक बार फिर होगी गाभिन
सात फेरों के बाद भी तुम्हारा अवलम्ब बन न सके बाबा
अपनी माँ-बहन है प्रिय, पर तुम और मैं क्यों नहीं माँ?
माँ! तुम्हें जलाया नहीं, न निष्कासित किया है
शायद तुम्हारे बाबा का धन तुम्हें जीवित रखता है
तुम्हारी कोख बाँझ नहीं, पुत्र की गुंजाइश बची है
शायद इसलिए तुम्हारी क़िस्मत, पूरी रूठी नहीं है।
माँ! तुम भी तो कितना सहती रही हो
स्त्री होने का ख़म्याज़ा भुगतती रही हो
दहेज तो पूरा लाई, पर वंश-वृक्ष उगा नहीं पाई
हर फ़र्ज़ निभाती रही, एक यह धर्म निभा नहीं पाई।
दहेज तो पूरा लाई, पर वंश-वृक्ष उगा नहीं पाई
हर फ़र्ज़ निभाती रही, एक यह धर्म निभा नहीं पाई।
माँ! अभिमन्यु ने पूरी कोख से पाया था अधूरा ज्ञान
मैं अधूरी कोख से पा गई, इस दुनिया का पूरा ज्ञान
दो महीने में वह सब देख आई, जो स्त्री सहती है
दोष किसी और का, वह अग्नि-परिक्षा देती रहती है।
माँ! तुम्हारी तरह अपराधी बन मैं जीना नहीं चाहती
तुम्हारी कोख में आकर तुम्हें मैं खोना नहीं चाहती
अब तुम्हारी कोख में कभी नहीं आऊँगी माँ
अब किसी कोख में कभी नहीं जाऊँगी माँ।
-जेन्नी शबनम (9.9.9)
(कन्या भ्रूण-हत्या)
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4 टिप्पणियां:
very touching lines.....par aane waale samay mein bahoot kuchh change hone waala hai.....
kavita to bahut acchi hai.. par ise untak kaise pahuchaya jaye jo betiyon ko maarte hai....... very touching indeed
samay ko yahi nirnay chahiye
beti-bete main bhedbaav- sadiyo se chala aa raha hai. us soch ko badalna hai. jab tak yeh mansikta nahi badlengi.. sab vyarth hai..
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