शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

167. देह, अग्नि और आत्मा... जाने कौन चिरायु / Deh, Agni aur Aatma... jaane koun chiraayu (पुस्तक- नवधा)

देह, अग्नि और आत्मा... जाने कौन चिरायु

***

जलती लकड़ी पर जल डाल दें
अग्नि बुझ जाती है और धुआँ उठता है
राख शेष रह जाती है और कुछ अधजले अवशेष बचते हैं
अवशेष को जब चाहें जला दें, जब चाहें बुझा दें

क्या हमारे मन की अग्नि को कोई जल बुझा सकता है
क्या एक बार बुझ जाने पर अवशेष को फिर जला सकते हैं
क्यों बच जाती है सिर्फ़ देह और साँसें
आत्मा तो मर जाती है, जबकि कहते कि आत्मा अमर है

नहीं समझ पाई अब तक, क्यों होता है ऐसा
आत्मा अमर है फिर मर क्यों जाती
क्यों नहीं सह पाती क्रूर वेदना या कठोर प्रताड़ना
क्यों बुझा मन फिर जलता नहीं।  

नहीं-नहीं! बहुत अवसाद है शायद
इन्सान की तुलना अग्नि से?
नहीं-नहीं! कदापि नहीं!
अग्नि तो पवित्र होती है
हम इन्सान ही अपवित्र होते हैं
शायद... इसीलिए...।
 
देह, अग्नि और आत्मा जाने कौन चिरायु?
कौन अमर? कौन...?

-जेन्नी शबनम (22.8.2010)
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Deh, Agni aur Aatma... jaane koun chiraayu

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Jalti lakdi par jal daal den 
agni bujh jaati hai aur dhuaan uthta hai
raakh shesh rah jaati hai aur kuchh adhjale avshesh bachte hain
avshesh ko jab chaahen jalaa den, jab chaahen bujha deyn.

Kya hamaare mann ki agni ko koi jal bujha sakta hai
kya ek baar bujh jaane par avshesh ko phir jalaa sakte hain
kyon bach jaati hai sirf deh aur saansen
aatma to mar jaati hai, jabki kahte ki aatma amar hai.

nahin samajh paayi ab tak, kyon hota hai aisa
aatma amar hai phir mar kyon jaati
kyon nahin sah paati krur vedna ya kathor prataadna
kyon bujhaa mann phir jalta nahin.

nahin-nahin! bahut avsaad hai shaayad
insaan ki tulna agni se?
nahin-nahin! kadaapi nahin!
agni to pavitra hoti hai
hum insaan hi apavitra hote hain 
shaayad... isiliye... 

Deh, Agni aur Aatma jaane koun chiraayu?
koun amar? koun..?

- Jenny Shabnam (22.8.2010)
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5 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

aatma nahi marti , tabhi to sisakti hai, bhatakti hai ...

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

Jenny jee, itna dard kahan se le aayeen, aap??


waise kavita sarvottam hai!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आत्मा अमर है, फिर मर क्यों जाती ?
क्यों नहीं सह पाती, क्रूर वेदना
या फिर, कठोर प्रताड़ना
क्यों बुझा मन, फिर जलता नहीं ?

बहुत संवेदनशील ....

gaurtalab ने कहा…

bahut achhi kavita hai...

dhanywad!

खोरेन्द्र ने कहा…

वादा किया है कि
मन में हँसी भर दोगे,
उम्मीद ख़त्म हुई हीं कहाँ
अब भी इंतज़ार है...
कोई एक हँसी
कोई एक पल,
वो एक सफ़र
जो पड़ाव था,
शायद रुक जाएँ
हम दोनों वहीं,
उसी जगह गुज़र जाए
पहला और अंतिम सफ़र !

bahut achchhi kavitaa