स्याह अँधेरों में न जाना तुम
*******
वो कहता
जाने क्यों कहता?
स्याह अँधेरों में
न जाना तुम
उदासी कभी भी
न ओढ़ना तुम
भोर की लालिमा-सी
सदा दमकना तुम।
कैसे समझाएँ?
क्या बतलाएँ?
उजाले से दिल कितना घबराता है
चेहरे की चुप्पी में
हर अनकहा दिख जाता है
ख़ुशी ठहरती नहीं
मन तो बहुत चाहता है।
मैंने कोई वादा न किया
उसने कसम क्यों न दिया?
अब तय किया है
तक़दीर के किस्से
उजालों में दफ़न होंगे
दिल में हों अँधेरे मगर
क़तार दीयों के सजेंगे
उजाले ही उजाले चहुँ ओर
'शब' के अँधेरे
किसी को न दिखेंगे।
- जेन्नी शबनम (21. 9. 2010)
_____________________
syaah andheron mein na jana tum
*******
wo kahta
jaane kyon kahta?
syaah andheron mein
na jana tum
udaasi kabhi bhi
na odhna tum
bhor ki laalima si
sada damakna tum.
kaise samjhaayen?
kya batlaayen?
ujaale se dil kitana ghabraata hai,
chehre ki chuppi mein
har ankaha dikh jata hai
khushi thaharti nahin
mann to bahut chaahta hai.
maine koi vada na kiya
usne kasam kyon na diya?
ab taye kiya hai
par taqdir ke kisse
ujaalon mein dafan honge
dil mein hon andhere magar
qataar diyon ke sajenge
ujaale hi ujaale chahun ore
'shab' ke andhere
kisi ko na dikhenge.
- Jenny Shabnam (21. 9. 2010)
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वो कहता
जाने क्यों कहता?
स्याह अँधेरों में
न जाना तुम
उदासी कभी भी
न ओढ़ना तुम
भोर की लालिमा-सी
सदा दमकना तुम।
कैसे समझाएँ?
क्या बतलाएँ?
उजाले से दिल कितना घबराता है
चेहरे की चुप्पी में
हर अनकहा दिख जाता है
ख़ुशी ठहरती नहीं
मन तो बहुत चाहता है।
मैंने कोई वादा न किया
उसने कसम क्यों न दिया?
अब तय किया है
तक़दीर के किस्से
उजालों में दफ़न होंगे
दिल में हों अँधेरे मगर
क़तार दीयों के सजेंगे
उजाले ही उजाले चहुँ ओर
'शब' के अँधेरे
किसी को न दिखेंगे।
- जेन्नी शबनम (21. 9. 2010)
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syaah andheron mein na jana tum
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wo kahta
jaane kyon kahta?
syaah andheron mein
na jana tum
udaasi kabhi bhi
na odhna tum
bhor ki laalima si
sada damakna tum.
kaise samjhaayen?
kya batlaayen?
ujaale se dil kitana ghabraata hai,
chehre ki chuppi mein
har ankaha dikh jata hai
khushi thaharti nahin
mann to bahut chaahta hai.
maine koi vada na kiya
usne kasam kyon na diya?
ab taye kiya hai
par taqdir ke kisse
ujaalon mein dafan honge
dil mein hon andhere magar
qataar diyon ke sajenge
ujaale hi ujaale chahun ore
'shab' ke andhere
kisi ko na dikhenge.
- Jenny Shabnam (21. 9. 2010)
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4 टिप्पणियां:
यह रचना हमें नवचेतना प्रदान करती है और नकारात्मक सोच से दूर सकारात्मक सोच के क़रीब ले जाती है।बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
योगदान!, सत्येन्द्र झा की लघुकथा, “मनोज” पर, पढिए!
उजाले हीं उजाले चहुँ ओर
''शब'' के अँधेरे किसी को न दिखेंगे
मन में कहीं गहरे उतर लिखी गयी है रचना ...
अच्छी प्रस्तुति
उजाले से
दिल कितना घबराता है,
चेहरे की चुप्पी में
हर अनकहा दिख जाता है,
ख़ुशी ठहरती नहीं
मन तो बहुत चाहता है !
gahan prastuti, sahaj manahsthiti yahi to hoti hai saath
उजाले हीं उजाले चहुँ ओर
''शब'' के अँधेरे किसी को न दिखेंगे !
-बहुत उम्दा!
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