जादू की एक अदृश्य छड़ी
***
तुम्हारे हाथ में रहती है
जादू की एक अदृश्य छड़ी
जिसे घुमाकर करते हो
अपनी मनचाही हर कामना पूरी
और रचते हो अपने लिए स्वप्निल संसार।
उसी छड़ी से छूकर
बना दो मुझे वह पवित्र परी
जिसे तुम अपनी कल्पनाओं में देखते हो
और अपने स्पर्श से प्राण फूँकते हो।
फिर मैं भी हिस्सा बन जाऊँगी
तुम्हारे संसार का
और जाना न होगा मुझे, उस मृत वन में
जहाँ हर पहर ढूँढती हूँ मैं, अपने प्राण।
- जेन्नी शबनम (13.12.2010)
______________________
***
तुम्हारे हाथ में रहती है
जादू की एक अदृश्य छड़ी
जिसे घुमाकर करते हो
अपनी मनचाही हर कामना पूरी
और रचते हो अपने लिए स्वप्निल संसार।
उसी छड़ी से छूकर
बना दो मुझे वह पवित्र परी
जिसे तुम अपनी कल्पनाओं में देखते हो
और अपने स्पर्श से प्राण फूँकते हो।
फिर मैं भी हिस्सा बन जाऊँगी
तुम्हारे संसार का
और जाना न होगा मुझे, उस मृत वन में
जहाँ हर पहर ढूँढती हूँ मैं, अपने प्राण।
- जेन्नी शबनम (13.12.2010)
______________________
14 टिप्पणियां:
कोमल भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति ... एक आध्यात्मिक खोज।
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
बधाई.
तुम्हारे हाथों में रहती है
जादू की एक अदृश्य छड़ी,
जिसे घुमा कर
करते हो
अपनी मनचाही
हर कामना पूरी,
और रचते हो
अपने लिए
स्वप्निल संसार !
aur hum dekhte rahte hain wah jadu aur dhoondhte hain us paar ka rahasya
उसी छड़ी से छू कर
बना दो मुझे
वो पवित्र परी,
जिसे तुम अपनी
कल्पनाओं में देखते हो
और अपने स्पर्श से
प्राण फूंकते हो !
aur mujhe kuch chahiye bhi nahi
lajwaab prastuti ......bahut khoob
इस मखमली अभिव्यक्ति का को जवाब ही नही है!
इसके लिए एक ही शब्द है "सुन्दर"
जादू की छड़ी से पवित्र परी बनने की परिकल्पना मन को छू गयी. सुंदर मनोभावों की मनोरम अभिव्यक्ति. आभार .
बहुत सुन्दर! बेहतरीन !
bhut hi sundar bhawnaawo ki prastuti...
बहुत सुन्दर! बेहतरीन!
behtreen ...
mere blog par bhi kabhi aaiye
Lyrics Mantra
बना दो मुझे
वो पवित्र परी,
जिसे तुम अपनी
कल्पनाओं में देखते हो
और अपने स्पर्श से
प्राण फूंकते हो !शबनम जी ये पंक्तियाँ तो बहुत प्राणवान् हैं । मन के तारों को झंकृत कर देती हैं । भावों के अनुकूल भाषा गहन मनथन से ही उपजता है । आपकी जितनी श्लाघा की जाए कम ही है । बहुत बधाई ! आपकी लेखनी इसी तरह अमृत वर्षा करती रहे !
"फिर मैं भी
हिस्सा बन जाऊँगी
तुम्हारे संसार का,
और जाना न होगा मुझे
उस मृत वन में
जहाँ हर पहर ढूंढ़ती हूँ मैं
अपने प्राण !"
जेन्नी जी ,शायद पहली बार आ पाया हूँ आपके ब्लॉग पर लेकिन जो मिला उससे कोमल भाव,उससे सच्ची चाहत कहाँ पता. देर से ही सही एक अद्भुत भावना का संसार देखने को मिला.
एक टिप्पणी भेजें