मुक्ति पा सकूँ
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मस्तिष्क के जिस हिस्से में विचार पनपते हैं
जी चाहता है, उसे काटकर फेंक दूँ
न कोई भाव जन्म लेंगे, न कोई सृजन होगा।
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मस्तिष्क के जिस हिस्से में विचार पनपते हैं
जी चाहता है, उसे काटकर फेंक दूँ
न कोई भाव जन्म लेंगे, न कोई सृजन होगा।
कभी-कभी अपने ही सृजन से भय होता है
जो रच जाते हैं, वे जीवन में उतर जाते हैं
जो जीवन में उतर गए, वे रचना में सँवर जाते हैं।
कई बार पीड़ा लिख देती हूँ और त्रासदी जी लेती हूँ
कई बार अपनी व्यथा, जो जीवन का हिस्सा है
पन्नों पर उतार देती हूँ।
विचार का पैदा होना, बाधित करना होगा अविलम्ब
ताकि वर्तमान और भविष्य के विचार और जीवन से
मुक्ति पा सकूँ।
-जेन्नी शबनम (11.10.2011)
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-जेन्नी शबनम (11.10.2011)
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13 टिप्पणियां:
बेहतरीन आधुनिक सन्दर्भ लिए परिभाषाये और अभिव्यतियाँ
कई बार पीड़ा लिख देती हूँ
और फिर त्रासदी जी लेती हूँ,
कई बार अपनी व्यथा
जो जीवन का हिस्सा है
पन्नों पर उतार देती हूँ!
विचार का पैदा होना
अवश्य बाधित करना होगा
अविलम्ब,
ताकि वर्तमान
और भविष्य के विचार
और जीवन से
मुक्ति पा सकूँ!
लिख देने से पीड़ा कम तो होती है
पर ख़त्म नहीं होती...!!
हलकी सी छुअन भी पूरे शरीर को
एक बारगी सिहरा जाती है...
और भूत,भविष्य और वर्तमान
सब एक हो जाते हैं...!!
खूबसूरत अंदाज़ और एहसास.......!!
भावपूर्ण रचना....
बढ़िया प्रस्तुति |
हमारी बधाई स्वीकारें ||
मस्तिष्क के जिस हिस्से में
विचार पनपते हैं
जी चाहता है उसे काट कर फेंक दूँ,
न कोई भाव जन्म लेंगे
न कोई सृजन होगा!.... lagta hai
बेहद गहन अभिव्यक्ति।
बहुत सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
mam padhkar achcha laga ,,,,,lekin kuch veechar samaj ko ek nayi dish dete hai,,,
jai hinnd jai bharat
कुशल अभिव्यक्ति !
बेहद गहन भाव लिए बहुत सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति|
ताकि वर्तमान
और भविष्य के विचार
और जीवन से
मुक्ति पा सकूँ!
और वर्त्तमान में
खुलकर जी सकूं....
बहुत अच्छा लिखा आपने.. हम तभी वर्तमान को पूरी तरह आनंद के साथ जी सकते हैं जब कोई पूर्वाग्रह न हो.
विचार बांटने के लिए धन्यवाद.
जेन्नी जी इन ।पंक्तियों में काव्य का प्रवाह सराहनीय है साथ में सर्जन का आधार भी सहजता से व्यक्त कर दिया गया है-
जो रच जाते
वो जीवन में उतर जाते हैं,
जो जीवन में उतर गए
वो रचना में सँवर जाते हैं!
कई बार पीड़ा लिख देती हूँ
और फिर त्रासदी जी लेती हूँ,
कई बार अपनी व्यथा
जो जीवन का हिस्सा है
पन्नों पर उतार देती हूँ!
मस्तिष्क के जिस हिस्से में
विचार पनपते हैं
जी चाहता है उसे काट कर फेंक दूँ,
आदरणीय जेन्नी जी,
मस्तिष्क तो प्रभु की अनुपम देन है.
सार्थक और शुभ चिंतन से मुक्ति
असम्भव नही.
आपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
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