मंगलवार, 8 नवंबर 2011

299. भय

भय

***

भय!
किससे भय? ख़ुद से?
ख़ुद से कैसा भय?
असम्भव!

पर ये सच है
अपने आप से भय
ख़ुद के होने से भय
ख़ुद के खोने का भय
अपने शब्दों से भय
अपने प्रेम से भय
अपने क्रोध से भय
अपने प्रतिकार से भय
अपनी चाहत का भय
अपनी कामना का भय
कुछ टूट जाने का भय
सब छूट जाने का भय  
कुछ अनजाना-अनचीन्हा भय
ज़िन्दगी के साथ चलता है
ख़ुद से ख़ुद को डराता है
 
कोई निदान?
असम्भव!
जीवन से मृत्युपर्यंत
भय! भय! भय!
न निदान, न नज़ात!

- जेन्नी शबनम (7.11.2011)
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12 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

जेन्नी,जी ..जब आदमी स्वयम गलत होता है और
अहसाश करने के बाद भी बार बार गलती दोहराता है तब उसे स्वयम से भय लगने लगता है,सुंदर पोस्ट..
मेरे नए पोस्ट में स्वागत है...

Rakesh Kumar ने कहा…

भय का कारण अज्ञानरूपी अँधेरे में रहना है.
जैसे अँधेरे में पड़ी रस्सी जब सर्प का भ्रम
पैदा करती है तो भय होता है.वहीँ यदि प्रकाश
कर दिया जाये और रस्सी का यथार्थ समझ आ जाये तो भय भी स्वत:समाप्त हो जाता है.

इसी प्रकार हृदय में जैसे जैसे ज्ञान का प्रकाश
उदय होता जाता है,अवांछित भयों से भी छुटकारा
मिलता जाता है.

इसलिये प्रार्थना की जाती है

'असतो मा सद् गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय'

मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो
अँधेरे से ज्योति की ओर ले चलो.

आपकी प्रस्तुति विचारोत्तेजक और सार्थक
चिंतन कराती है.सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार
जेन्नी जी.

सहज साहित्य ने कहा…

भय के कितने रुप उकेर दिए आपने जेन्नी जी ! आपकी काल्पनाशीलता पर मुग्ध हूँ । ये भय तो सचमुच व्यक्ति को बहुत तोड़ते हैं-
अपने प्रेम से भय,
अपने क्रोध से भय
अपने प्रतिकार से भय,
अपनी चाहत का भय
अपनी कामना का भय,
कुछ टूट जाने का भय
सब छूट जाने का भय !

रश्मि प्रभा... ने कहा…

isi bhay se grasit hum arth ka anarth kerte jate hain ...

mridula pradhan ने कहा…

bhay......bahut gahre bhaw.....

नीरज गोस्वामी ने कहा…

इस खूबसूरत सार्थक रचना के लिए बधाई
नीरज

दिगम्बर नासवा ने कहा…

इस भय से इंसान खुद ही उभर पाता है ... मन में सोच लो तो भय नहीं रहता ...

अनुपमा पाठक ने कहा…

भय मुक्त होने के लिए आत्मा का जागृत होना आवश्यक है!
भय के अनेक रूप खूब अभिव्यक्त हुए हैं!

Kailash Sharma ने कहा…

जीवन से मृत्युपर्यंत
भय भय भय
न निदान
न निज़ात !

.... जन्म से मृत्युपर्यंत मानव किसी न किसी भय से ग्रस्त रहता है..कोशिश करता है इस भय से दूर होने की, पर कहाँ सफल हो पाता है...बहुत गहन और सुंदर अभिव्यक्ति..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति!

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

***Punam*** ने कहा…

"अपनी चाहत का भय
अपनी कामना का भय,
कुछ टूट जाने का भय
सब छूट जाने का भय !"

फिर भी निजात संभव है ...!!