जा तुझे इश्क़ हो
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तुम्हें आँसू नहीं पसन्द
चाहे मेरी आँखों के हों
या किसी और के
चाहते हो, हँसती ही रहूँ
भले ही वेदना से मन भरा हो।
जानती हूँ और चाहती भी हूँ
तुम्हारे सामने तटस्थ रहूँ
अपनी मनोदशा व्यक्त न करूँ
लेकिन तुमसे बातें करते-करते
आँखों में आँसू भर आते हैं
हर दर्द रिसने लगता है।
मालूम है मुझे
तुम्हारी सीमाएँ, तुम्हारा स्वभाव
और तुम्हारी आदतें
अक्सर सोचती हूँ
कैसे इतने सहज होते हो
फ़िक्रमन्द भी हो और
बिन्दास हँसते भी रहते हो।
कई बार महसूस किया है
मेरे दर्द से तुम्हें आहत होते हुए
देखा है तुम्हें, मुझे राहत देने के लिए
कई उपक्रम करते हुए।
समझाते हो मुझे अक्सर
इश्क़ से बेहतर है दुनियादारी
और हर बार मैं इश्क़ के पक्ष में होती हूँ
और तुम हर बार अपने तर्क पर क़ायम।
ज़िन्दगी को तुम अपनी शर्तों से जीते हो
इश्क़ से बहुत दूर रहते हो
या फिर इश्क़ हो न जाए
शायद इस बात से डरे रहते हो।
मुमकिन है
तुम्हें इश्क़ वैसे ही नापसन्द हो, जैसे आँसू
ग़ैरों के दर्द को महसूस करना और बात है
दर्द को ख़ुद जीना और बात।
एक बार तुम भी जी लो, मेरी ज़िन्दगी
जी चाहता है
तुम्हें शाप दे ही दूँ-
''जा तुझे इश्क़ हो!"
-जेन्नी शबनम (29.2.2012)
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24 टिप्पणियां:
बहुत खूब ... क्या दुआ है ...
इश्क होने पे सब संवेदनाएं अपने आप ही आ जाती हैं ...
एक औरत और एक पुरुष की संवेदनाएं इतनी ही भिन्न होती हैं... सटीक चित्रण
vaah vaah jenni ji bhaavon ko kitni sundarta se sootr me piroya hai ant to bemisaal hai jaa tujhe ishq ho ...bada jabardast shraap hai.
sundar rachna..
एक बार तुम भी जी लो
मेरी ज़िन्दगी
जी चाहता है
तुम्हे श्राप दे ही दूँ
''जा तुझे इश्क हो''!
Kya baat hai!
इश्क शाप है अगर तो, कर दे बन्दा माफ़ ।
दुनियादारी में पड़ा, क्या करना इन्साफ ।
क्या करना इन्साफ, दर्द की लम्बी रेखा ।
हर चेहरे पर साफ़, सिसकती पल पल देखा ।
रविकर बदला भूल, निछावर होते जाओ ।।
घूमे मौला मस्त, शिकायत नहीं सुनाओ ।।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
http://dineshkidillagi.blogspot.in
जी चाहता है
तुम्हे श्राप दे ही दूँ
''जा तुझे इश्क हो………………आह!
खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
bahut sunder rachna ...
मन की गहरी अभिव्यक्ति
वाह!
बहुत उम्दा प्रस्तुति!
एक बार तुम भी जी लो
मेरी ज़िन्दगी
जी चाहता है
तुम्हे श्राप दे ही दूँ
''जा तुझे इश्क हो''!
वाह!!!जेन्नी शबनम जी
बहुत अच्छी प्रस्तुति,इस सुंदर रचना के लिए बधाई,...
MY NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 01-03 -2012 को यहाँ भी है
..शहीद कब वतन से आदाब मांगता है .. नयी पुरानी हलचल में .
किसी को बदुआ देनी हो ...तो यही कहना चाहिए...कि जा तुझे इश्क हो जाए
शबनम जी, गजब का है आपका अंदाजे बयां। इतनी साफगोई, इतनी तरलता, सचमुच आनंद आ गया।
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..की-बोर्ड वाली औरतें।
मूस जी मुस्टंडा...
वाह!!!!
सच है तभी दर्द क्या होता है ये समझ आएगा..
सुन्दर रचना जेन्नी जी...और नया टेम्पलेट डिजाइन भी :-)
ekdam naya andaz....bahut achcha laga.
ऐसा शाप पहली बार सुना - अनुभव का आभास हो रहा है !
//एक बार तुम भी जी लो
मेरी ज़िन्दगी
जी चाहता है
तुम्हे श्राप दे ही दूँ
''जा तुझे इश्क हो''!
gazab.. ye shraap hai ya vardaan ye to aaj tak unsuljhi gutthi hi hai.. :)
palchhin-aditya.blogspot.com
बातें करते करते
आँखों में आँसू भर आते हैं
हर दर्द रिसने लगता है,
मालूम है मुझे
तुम्हारी सीमाएं
तुम्हारा स्वभाव
और तुम्हारी आदतें
अक्सर सोचती हूँ
कैसे इतने सहज होते हो
फिक्रमंद भी हो और
बिंदास हँसते भी रहते हो,
कई बार महसूस किया है
मेरे दर्द से तुम्हे आहत होते हुए
देखा है तुम्हें
मुझे राहत देने के लिए
कई उपक्रम करते हुए,
जेन्नी जी आपकी ये पंक्तियां तो बेजोड़ हैं ही , ऊपर से शाप देने की बात वह भी इश्क होने का !खूब चारुता है इस कथन में । हार्दिक बधाई!
अरे बाप रे बाप!
आपने तो बहुत बेहतरीन श्राप
दे दिया है.
यह इश्क भी क्या बला है,जेन्नी जी.
क्या पता उन्हें पहले से
ही इश्क हो .क्यूँ कि इश्क का
भी तो अंदाज अपना अपना है.
हाँ,आपके श्राप से
शायद उनका इश्क भी आपके
मन माफिक हो जाए.
शानदार प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार.
आपकी पिछली पोस्टें भी समय मिलने पर
धीरे धीरे देखूंगा.अभी टायफाइड से ग्रस्त हूँ.
कोई कहता है इश्क रब है कोई कहता है इश्क शैतान है
कोई उसे वरदान समझता है और कोई इश्क होने का श्राप देता है
कैसा ये इश्क है ...अजब सा रिस्क है
खुबसूरत रचना
दूसरी बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ...आपकी कवितायेँ सीधी सहज और दिल से निकली हुई लगीं ...अच्छा लगा पढ़कर ..
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