रविवार, 15 अप्रैल 2012

340. आम आदमी के हिस्से में

आम आदमी के हिस्से में

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सच है
पेट के आगे हर भूख कम पड़ जाती है
चाहे मन की हो या तन की
यह भी सच है
इश्क़ करता, तो यह सब कहाँ कर पाता
इश्क़ में कितने दिन ख़ुद को ज़िन्दा रख पाता
वक़्त से थका-हारा, दिन भर पसली घिसता
रोटी जुटाए या दिल में फूल उपजाए 
देह में जान कहाँ बचती
जो इश्क़ फ़रमाए
सच है, आम आदमी के हिस्से में
इश्क़ भी नहीं!

- जेन्नी शबनम (15.4.2012)
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13 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

वक्त से थका-हारा
दिन भर पसली घिसता
रोटी जुटाए या दिल में फूल उपजाए
देह में जान कहाँ बचती
जो इश्क फरमाए,
सच है आम आदमी के हिस्से में
इश्क भी नहीं !

आज के आम आदमी की यही है सच्चाई,,,,,

बहुत सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट
.
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

वाणी गीत ने कहा…

सच है !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बेचारा आम आदमी ...कुछ भी नहीं उसके हिस्से में ...

Saras ने कहा…

सच कहा भूख के पिशाच के सामने ...किसी की नहीं चलती ......कटु सत्य !!!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

आग का दरिया है इश्क और पेट की भूख है आग ...

दीपिका रानी ने कहा…

वाकई... सच को बयां करती कविता

Pallavi saxena ने कहा…

सच है लेकिन इश्क एक भावना है क्यूंकि इश्क के जज़्बातों का रिश्ता तो दिल से है। और भूख शरीर की एक जरूरत है जो अक्सर भावनाओं पर भारी पड़ती है मगर तब भी इश्क करते सभी हैं। कुछ डंके कि चोंट पर तो कुछ छुप-छुप के ....

Sunil Kumar ने कहा…

बहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति बधाई

Dinesh pareek ने कहा…

गजब का शब्दों का समावेश करती है आप बहुत ही सुन्दर

बहुत बहुत धन्यवाद की आप मेरे ब्लॉग पे आये
बस इसी तरह से मेरा मनोबल बढ़ाते रहिये गा
क्या खू़ब गज़ब की बातें होती
चर्चायें हर गलियों में
हम भी तो हैं शामिल होते

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आम आदमी तो बेचारा पिस्ता ही रहता है दो जून की चक्की में ... इश्क उसके नसीब में नहीं ... कुछ हद तक ठीक भी है ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सटीक और सार्थक प्रस्तुति!

ashok andrey ने कहा…

bahut sateek baat kahii hai iss kavita men,badhai.

Kailash Sharma ने कहा…

सच है
आम आदमी के हिस्से में
इश्क भी नहीं !

...आज का एक कटु सत्य....बहुत सुन्दर रचना...आभार