पंचों का फ़ैसला
कुछ शब्द उन पंचों के समान
***
उच्च आसन पर बैठे हैं
जिनके फ़ैसले सदैव निष्पक्ष होने चाहिए
ऐसी मान्यता है।
सामने कुछ अनसुलझे प्रश्न पड़े हैं, विचारार्थ
वादी-प्रतिवादी, कुछ सबूत, कुछ गवाह
सैकड़ों की संख्या में उद्वेलित भीड़।
अंततः पंचों का फ़ैसला
निर्विवाद, निर्विरोध
उन सबके विरुद्ध
जिनके पास पैदा करने की शक्ति है
चाहे जिस्म हो या ज़मीन।
फ़रमान-
बेदख़ल कर दो
बाँट दो! काट दो! लूट लो!
- जेन्नी शबनम (6.6.2012)
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23 टिप्पणियां:
जिसकी लाठी उसकी भैंस?????
सशक्त रचना जेन्नी जी.
सस्नेह.
्पंच बने ये शब्द रोज़मर्रा ऐसे फ़तवे जारी करतेर हैं , जिनका उद्देश्य सामान्य जन का जीवन मुहाल बना देना है । आपने जो आक्रोश इस कविता में अभिव्यक्त किया है , वह पुर असर है । आपकी अभिव्यक्ति नित्य प्रति और अधिक प्रखर और सशक्त हो रही है । बहुत बधाई !
prabhwshali......
सार्थक सटीक भाव पुर्ण अभिव्यक्ति ,,,,,
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
जिनके पास पैदा करने की शक्ति है
चाहे जिस्म हो या ज़मीन,
फरमान -
बेदखल कर दो
बाँट दो
काट दो
लूट लो......आज यही होरहा है...बहुत सार्थक सुन्दर अभिव्यक्ति...
JENNY JI , KHOOBSOORAT KAVITA KE
LIYE AAPKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA.
JENNY JI , KHOOBSOORAT KAVITA KE
LIYE AAPKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA.
अंततः पंचों का फैसला
निर्विवाद
निर्विरोध
उन सबके विरुद्ध
जिनके पास पैदा करने की शक्ति है
चाहे जिस्म हो या ज़मीन,
....बहुत मर्मस्पर्शी....लाज़वाब अभिव्यक्ति...
क्या बात है जेन्नी जी.
आपके लम्हों का सफर भी बिलकुल अनूठा है.
पांचो को परमेश्वर मानने वालो की कमी नहीं हैं ....
चाहे जिस्म हो या ज़मीन,
फरमान -
बेदखल कर दो
बाँट दो
काट दो
लूट लो......
ye hi to ho raha sabhi jagah .
जो जीवित है हर हाल में फैसला उसे ही सुनना होता है !
चाहे जिस्म हो या ज़मीन,
फरमान -
बेदखल कर दो
बाँट दो
काट दो
लूट लो......
kadvi suchaayi..
इस अंधे राज को हम सभी झेल रहे है
बेदखल कर दो बाँट दो काट दो लूट लो...
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
आपको हार्दिक शुभकामनायें !
शब्द पञ्च बने हुए .... बहुत गहन अभिव्यक्ति
गहन भाव लिए ... सशक्त अभिव्यक्ति ।
बहुत सुन्दर रचना शेयर करने के लिये बहुत बहुत आभार,
शब्दों को बिम्ब रूप में ले क्या सुन्दर सामयिक रचना रची है आपने....
सादर.
फरमान - बेदखल कर दो बाँट दो काट दो लूट लो... yakinaan..har faisla inhin shbdon ke sath smaapt hota hai ...sundar rachna ma'am....
चाहे जिस्म हो या ज़मीन,
फरमान -
बेदखल कर दो
बाँट दो....
सार्थक और प्रशंसनीय प्रस्तुति.
हाल ही में खापों के बारे में जानकारी हुई सत्यमेव जयते प्रोग्राम से... जानकार आश्चर्य भी हुआ कि ऐसा भी होता है.. और अभी आपकी कविता पढ़ी.. तो उसी और इंगित करती सी लगी..
अच्छी सार्थक रचना.
सादर
great !
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