मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012

374. आज़ादी (पुस्तक 81)

आज़ादी

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आज़ादी
कुछ-कुछ वैसी ही है 
जैसे छुटपन में, पाँच पैसे से ख़रीदा हुआ लेमनचूस 
जिसे खाकर मन खिल जाता था,  
खुले आकाश तले, तारों को गिनती करती  
वो बुढ़िया 
जिसने सारे कर्त्तव्य निबाहे, और अब बेफ़िक्र, बेघर 
तारों को मुट्ठियों में भरने की ज़िद कर रही है
उसके जिद्दी बच्चे 
इस पागलपन को देख, कन्नी काटकर निकल लेते हैं
क्योंकि उम्र और अरमान का नाता वो नहीं समझते, 
आज़ाद तो वो भी हैं 
जिनके सपने अनवरत टूटते रहे  
और नये सपने देखते हुए 
हर दिन घूँट-घूँट, अपने आँसू पीते हुए  
पुण्य कमाते हैं,
आज़ादी ही तो है  
जब सारे रिश्तों से मुक्ति मिल जाए  
यूँ भी, नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है?
स्वाभिमान का अभिनय 
आख़िर कब तक?

- जेन्नी शबनम (16. 10. 2012)
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47 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

आपने सही कहा,,,,

नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ?
स्वाभिमान का अभिनय
आखिर कब तक,,,,,,भाव पूर्ण पंक्तियाँ,,,,

RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी


kshama ने कहा…

जब सारे रिश्तों से मुक्ति मिल जाए
यूँ भी
नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ?
स्वाभिमान का अभिनय
आखिर कब तक ?
Aah!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह...
सटीक विचार...
सशक्त अभिव्यक्ति...

सादर
अनु

राजेश सिंह ने कहा…

रिश्ते-नाते एकतरफा नहीं जुड़ते .जहाँ तक स्वाभिमान का प्रश्न है एक मर्यादित विनम्रता के साथ एक स्तर पर यह भी जरुरी है

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ?
स्वाभिमान का अभिनय
आखिर कब तक,,,,,,भावमय बेहतरीन पंक्तियाँ,,,,

नवरात्रि की शुभकामनाएं,,,,

RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी


रविकर ने कहा…

प्रभावी प्रस्तुति |
आभार ||

Unknown ने कहा…

चर्चा मंच सजा रहा, मैं तो पहली बार |
पोस्ट आपकी ले कर के, "दीप" करे आभार ||
आपकी उम्दा पोस्ट बुधवार (17-10-12) को चर्चा मंच पर | सादर आमंत्रण |
सूचनार्थ |

Dr. sandhya tiwari ने कहा…

पांच पैसे से खरीदा हुआ लेमनचूस
जिसे खाकर मन खिल जाता था,
ye lemanchus aaj ki mahangi tauphiyon se kahi adhik santusti dene vala tha

Ramakant Singh ने कहा…

उसके जिद्दी बच्चे
इस पागलपन को देख
कन्नी काट कर निकल लेते हैं
क्योंकि उम्र और अरमान का नाता वो नहीं समझते,
आज़ाद तो वो भी हैं

जिंदगी और ज़िन्दगी से जुड़े लम्हों को रिश्तों के संग बड़े खूबसूरती से जिया है .

virendra sharma ने कहा…

आज़ादी ही तो है
जब सारे रिश्तों से मुक्ति मिल जाए
यूँ भी
नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ?
स्वाभिमान का अभिनय
आखिर कब तक ?

***Punam*** ने कहा…

सही कहा....
स्वाभिमान का अभिनय.....
कब तक.....???

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

हालात ही ऐसे बने हुए हैं!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/10/blog-post_17.html

विभूति" ने कहा…

सशक्त और प्रभावशाली रचना.....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 18-10 -2012 को यहाँ भी है

.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
मलाला तुम इतनी मासूम लगीं मुझे कि तुम्हारे भीतर बुद्ध दिखते हैं ....। .

Vandana Ramasingh ने कहा…

आज़ादी ही तो है
जब सारे रिश्तों से मुक्ति मिल जाए
यूँ भी
नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ?
स्वाभिमान का अभिनय
आखिर कब तक ?

बेहद प्रभावी ...

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

आज़ादी ही तो है
जब सारे रिश्तों से मुक्ति मिल जाए
यूँ भी
नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ?
- रिश्तों से मुक्ति !बड़ी मुश्किल है,कहीं कुछ रह जाता है.

Amrita Tanmay ने कहा…

सवाल का जवाब न मिले तो बेहतर है..

सदा ने कहा…

जब सारे रिश्तों से मुक्ति मिल जाए
यूँ भी
नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ?
स्वाभिमान का अभिनय
आखिर कब तक ?
कितनी सच्‍ची बात ...

nayee dunia ने कहा…

बहुत सुन्दर

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति

Maheshwari kaneri ने कहा…

सुन्दर भाव,सशक्त अभिव्यक्ति...

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत उम्दा और सारगर्भित कविता |

virendra sharma ने कहा…


वो बुढ़िया

जिसने सारे कर्त्तव्य निबाहे ......कर्तव्य .......

बहुत बढ़िया रचना है दोबारा पढ़ी ."मान न मान मैं तेरा मेहमान ",मैं हूँ स्वाभिमान .अब भाई साहब इस हाथ दो इस हाथ लो .हर चीज़ उठाऊ और बिकाऊ है .
संबंधों का एक अर्थशास्त्र भी विकास मान है ,प्रगति पर है भारत की विकासदर की तरह .माननीया आप हमारे ब्लॉग पे आईं ,हमारे ब्लॉग का कद थोड़ा

सा और बढ़ गया .शुक्रिया .

Fani Raj Mani CHANDAN ने कहा…

Swabhimaan ka abhinay aakhir kab tak

Bahut khoobsoorat prastuti...

प्रेम सरोवर ने कहा…

भाव-प्रवण कविता अच्छी लगी। धन्यवाद।

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति...

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

शुरुआत में ही लेमनचूस की याद दिला दी... बहुत बढ़िया रचना

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

very nice ....

Minakshi Pant ने कहा…

कुछ नहीं कहूंगी हाँ रचना में दम है इसलिए सार्थक तो कहना ही होगा | सार्थक रचना |

Satish Saxena ने कहा…

प्रभावशाली ...
शुभकामनायें आपको !

Rachana ने कहा…

kya khoob tulna ki hai lemanchuch kamal hai
bahut hi gahan bhav hai aur tikha sach bhi
badhai
rachana

mridula pradhan ने कहा…

नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ? bikul sahi.....

kavita verma ने कहा…

behtareen abhivyakti.

Madhuresh ने कहा…

सच, गहराई कोसो दूर है, बस अभिनय रह गया है रिश्तों में .. अब वो लेमनचूस वाली ख़ुशी कहाँ?

रविकर ने कहा…

दीप पर्व की

हार्दिक शुभकामनायें
देह देहरी देहरे, दो, दो दिया जलाय-रविकर

लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।

सदा ने कहा…

वाह ... बहुत ही भावमय करते शब्‍द

!! प्रकाश पर्व की आपको अनंत शुभकामनाएं !!

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...
आपको सहपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ..
:-)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति!
--
दीवाली का पर्व है, सबको बाँटों प्यार।
आतिशबाजी का नहीं, ये पावन त्यौहार।।
लक्ष्मी और गणेश के, साथ शारदा होय।
उनका दुनिया में कभी, बाल न बाँका होय।
--
आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…




ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
♥~*~दीपावली की मंगलकामनाएं !~*~♥
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
सरस्वती आशीष दें , गणपति दें वरदान
लक्ष्मी बरसाएं कृपा, मिले स्नेह सम्मान

**♥**♥**♥**● राजेन्द्र स्वर्णकार● **♥**♥**♥**
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ

sushila ने कहा…

"आज़ाद तो वो भी हैं
जिनके सपने अनवरत टूटते रहे
और नए सपने देखते हुए
हर दिन घूँट-घूँट
अपने आँसू पीते हुए
पुण्य कमाते हैं,"

बहुत सुंदर अभिव्यक्‍ति !

sushila ने कहा…

"आज़ाद तो वो भी हैं
जिनके सपने अनवरत टूटते रहे
और नए सपने देखते हुए
हर दिन घूँट-घूँट
अपने आँसू पीते हुए
पुण्य कमाते हैं,"

बहुत सुंदर अभिव्यक्‍ति !

रश्मि प्रभा... ने कहा…

अभिनय बनकर ही रह गई है आज़ादी .... स्वाभिमान की सोच नहीं

Dr ajay yadav ने कहा…

सुंदर कविता ............बहुत खूबसूरत बात ....सादर आभार !

Unknown ने कहा…

सटीक विचार ,सशक्त अभिव्यक्ति ..." क्योंकि उम्र और अरमान का नाता वो नहीं समझते, आज़ाद तो वो भी हैं जिनके सपने अनवरत टूटते रहे और नए सपने देखते हुए हर दिन घूँट-घूँट अपने आँसू पीते हुए पुण्य कमाते हैं, आज़ादी ही तो है जब सारे रिश्तों से मुक्ति मिल जाए यूँ भी
नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ? स्वाभिमान का अभिनय आखिर कब तक ?......

गुरप्रीत सिंह ने कहा…

उत्तम।
http://yuvaam.blogspot.com/p/blog-page_9024.html?m=0