आज़ादी
आज़ादी
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कुछ-कुछ वैसी ही है
जैसे छुटपन में, पाँच पैसे से ख़रीदा हुआ लेमनचूस
जिसे खाकर मन खिल जाता था,
खुले आकाश तले, तारों को गिनती करती
वो बुढ़िया
जिसने सारे कर्त्तव्य निबाहे, और अब बेफ़िक्र, बेघर
तारों को मुट्ठियों में भरने की ज़िद कर रही है
उसके जिद्दी बच्चे
इस पागलपन को देख, कन्नी काटकर निकल लेते हैं
क्योंकि उम्र और अरमान का नाता वो नहीं समझते,
आज़ाद तो वो भी हैं
जिनके सपने अनवरत टूटते रहे
और नये सपने देखते हुए
हर दिन घूँट-घूँट, अपने आँसू पीते हुए
पुण्य कमाते हैं,
आज़ादी ही तो है
जब सारे रिश्तों से मुक्ति मिल जाए
यूँ भी, नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है?
स्वाभिमान का अभिनय
आख़िर कब तक?
- जेन्नी शबनम (16. 10. 2012)
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47 टिप्पणियां:
आपने सही कहा,,,,
नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ?
स्वाभिमान का अभिनय
आखिर कब तक,,,,,,भाव पूर्ण पंक्तियाँ,,,,
RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी
जब सारे रिश्तों से मुक्ति मिल जाए
यूँ भी
नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ?
स्वाभिमान का अभिनय
आखिर कब तक ?
Aah!
वाह...
सटीक विचार...
सशक्त अभिव्यक्ति...
सादर
अनु
रिश्ते-नाते एकतरफा नहीं जुड़ते .जहाँ तक स्वाभिमान का प्रश्न है एक मर्यादित विनम्रता के साथ एक स्तर पर यह भी जरुरी है
नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ?
स्वाभिमान का अभिनय
आखिर कब तक,,,,,,भावमय बेहतरीन पंक्तियाँ,,,,
नवरात्रि की शुभकामनाएं,,,,
RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी
प्रभावी प्रस्तुति |
आभार ||
चर्चा मंच सजा रहा, मैं तो पहली बार |
पोस्ट आपकी ले कर के, "दीप" करे आभार ||
आपकी उम्दा पोस्ट बुधवार (17-10-12) को चर्चा मंच पर | सादर आमंत्रण |
सूचनार्थ |
पांच पैसे से खरीदा हुआ लेमनचूस
जिसे खाकर मन खिल जाता था,
ye lemanchus aaj ki mahangi tauphiyon se kahi adhik santusti dene vala tha
उसके जिद्दी बच्चे
इस पागलपन को देख
कन्नी काट कर निकल लेते हैं
क्योंकि उम्र और अरमान का नाता वो नहीं समझते,
आज़ाद तो वो भी हैं
जिंदगी और ज़िन्दगी से जुड़े लम्हों को रिश्तों के संग बड़े खूबसूरती से जिया है .
आज़ादी ही तो है
जब सारे रिश्तों से मुक्ति मिल जाए
यूँ भी
नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ?
स्वाभिमान का अभिनय
आखिर कब तक ?
सही कहा....
स्वाभिमान का अभिनय.....
कब तक.....???
हालात ही ऐसे बने हुए हैं!
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/10/blog-post_17.html
सशक्त और प्रभावशाली रचना.....
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 18-10 -2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
मलाला तुम इतनी मासूम लगीं मुझे कि तुम्हारे भीतर बुद्ध दिखते हैं ....। .
आज़ादी ही तो है
जब सारे रिश्तों से मुक्ति मिल जाए
यूँ भी
नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ?
स्वाभिमान का अभिनय
आखिर कब तक ?
बेहद प्रभावी ...
आज़ादी ही तो है
जब सारे रिश्तों से मुक्ति मिल जाए
यूँ भी
नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ?
- रिश्तों से मुक्ति !बड़ी मुश्किल है,कहीं कुछ रह जाता है.
सवाल का जवाब न मिले तो बेहतर है..
जब सारे रिश्तों से मुक्ति मिल जाए
यूँ भी
नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ?
स्वाभिमान का अभिनय
आखिर कब तक ?
कितनी सच्ची बात ...
बहुत सुन्दर
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति
सुन्दर भाव,सशक्त अभिव्यक्ति...
बहुत उम्दा और सारगर्भित कविता |
वो बुढ़िया
जिसने सारे कर्त्तव्य निबाहे ......कर्तव्य .......
बहुत बढ़िया रचना है दोबारा पढ़ी ."मान न मान मैं तेरा मेहमान ",मैं हूँ स्वाभिमान .अब भाई साहब इस हाथ दो इस हाथ लो .हर चीज़ उठाऊ और बिकाऊ है .
संबंधों का एक अर्थशास्त्र भी विकास मान है ,प्रगति पर है भारत की विकासदर की तरह .माननीया आप हमारे ब्लॉग पे आईं ,हमारे ब्लॉग का कद थोड़ा
सा और बढ़ गया .शुक्रिया .
Swabhimaan ka abhinay aakhir kab tak
Bahut khoobsoorat prastuti...
भाव-प्रवण कविता अच्छी लगी। धन्यवाद।
बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
शुरुआत में ही लेमनचूस की याद दिला दी... बहुत बढ़िया रचना
very nice ....
कुछ नहीं कहूंगी हाँ रचना में दम है इसलिए सार्थक तो कहना ही होगा | सार्थक रचना |
प्रभावशाली ...
शुभकामनायें आपको !
kya khoob tulna ki hai lemanchuch kamal hai
bahut hi gahan bhav hai aur tikha sach bhi
badhai
rachana
नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ? bikul sahi.....
behtareen abhivyakti.
सच, गहराई कोसो दूर है, बस अभिनय रह गया है रिश्तों में .. अब वो लेमनचूस वाली ख़ुशी कहाँ?
दीप पर्व की
हार्दिक शुभकामनायें
देह देहरी देहरे, दो, दो दिया जलाय-रविकर
लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
वाह ... बहुत ही भावमय करते शब्द
!! प्रकाश पर्व की आपको अनंत शुभकामनाएं !!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...
आपको सहपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ..
:-)
सुन्दर प्रस्तुति!
--
दीवाली का पर्व है, सबको बाँटों प्यार।
आतिशबाजी का नहीं, ये पावन त्यौहार।।
लक्ष्मी और गणेश के, साथ शारदा होय।
उनका दुनिया में कभी, बाल न बाँका होय।
--
आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
♥~*~दीपावली की मंगलकामनाएं !~*~♥
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
सरस्वती आशीष दें , गणपति दें वरदान
लक्ष्मी बरसाएं कृपा, मिले स्नेह सम्मान
**♥**♥**♥**● राजेन्द्र स्वर्णकार● **♥**♥**♥**
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
"आज़ाद तो वो भी हैं
जिनके सपने अनवरत टूटते रहे
और नए सपने देखते हुए
हर दिन घूँट-घूँट
अपने आँसू पीते हुए
पुण्य कमाते हैं,"
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
"आज़ाद तो वो भी हैं
जिनके सपने अनवरत टूटते रहे
और नए सपने देखते हुए
हर दिन घूँट-घूँट
अपने आँसू पीते हुए
पुण्य कमाते हैं,"
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
अभिनय बनकर ही रह गई है आज़ादी .... स्वाभिमान की सोच नहीं
सुंदर कविता ............बहुत खूबसूरत बात ....सादर आभार !
सटीक विचार ,सशक्त अभिव्यक्ति ..." क्योंकि उम्र और अरमान का नाता वो नहीं समझते, आज़ाद तो वो भी हैं जिनके सपने अनवरत टूटते रहे और नए सपने देखते हुए हर दिन घूँट-घूँट अपने आँसू पीते हुए पुण्य कमाते हैं, आज़ादी ही तो है जब सारे रिश्तों से मुक्ति मिल जाए यूँ भी
नाते मुफ़्त में जुड़ते कहाँ है ? स्वाभिमान का अभिनय आखिर कब तक ?......
उत्तम।
http://yuvaam.blogspot.com/p/blog-page_9024.html?m=0
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