गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

385. हवा

हवा

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हवा कटार है, अंगार है, तूफ़ान है 
हवा जलती है, सुलगती है, उबलती है 
हवा लहू से लथपथ 
लाल और काले के भेद से अनभिज्ञ
बवालों से घिरी है। 
  
हवा ख़ुद से जिरह करती, शनैः-शनैः सिसकती है
हवा अपने ज़ख़्मी पाँव को घसीटते हुए 
दर-ब-दर भटक रही है 
हवा अपने लिए बैसाखी भी नहीं चाहती। 
 
वह जान चुकी है
हवा की अपनी मर्ज़ी नहीं होती 
ज़माने का रुख़
उसकी दिशा तय करता है। 

- जेन्नी शबनम (28.2.2013)
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13 टिप्‍पणियां:

Dr. sandhya tiwari ने कहा…

sahi kaha aapne .........

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ज़माना तय करता है हवाओं का रुख ...
कितनी गहरी बात कह दी ... स्वछंद होते हुवे भी नहीं है आज की हवा ... बहुत खूब ..

Ramakant Singh ने कहा…

हवाएँ
अपने ज़ख़्मी पाँव को
घसीटते हुए
दर-ब-दर भटक रही है
हवाएँ
अपने लिए बैसाखी भी नहीं चाहती
अब वो जान चुकी है
हवाओं की अपनी मर्ज़ी नहीं होती
जमाने का रुख
उसकी दिशा तय करता है !

हवा का रुख बदल डालो अपनी तासीर अपनाओ
कि उस तक़दीर को पढ़कर खुदा भी मुस्कुरा बैठे

Madan Mohan Saxena ने कहा…

Nice one.

रविकर ने कहा…

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।

Saras ने कहा…

बहुत सही ..सटीक ..सुन्दर व्याख्या

Kailash Sharma ने कहा…

अब वो जान चुकी है
हवाओं की अपनी मर्ज़ी नहीं होती
जमाने का रुख
उसकी दिशा तय करता है !

...वाह! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

हवाओं की अपनी मर्ज़ी नहीं होती
जमाने का रुख
उसकी दिशा तय करता है
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
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Dinesh pareek ने कहा…

हर शब्द की अपनी एक पहचान बहुत खूब कहा अपने आभार
ये कैसी मोहब्बत है

Dinesh pareek ने कहा…

हर शब्द की अपनी एक पहचान बहुत खूब क्या खूब लिखा है आपने आभार
ये कैसी मोहब्बत है

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

KYA KHOOB LIKHA HAI,IN PANKTION SE AAP KI RACHNA KA SWAGT HAI
"RUKH HAWAVO KA BADALNA CHAHIYE,ZAMANE KE ISHARON PAR,MUSKILE HAL HO NAHI SAKTI NAZRON K ISHARE PAR...."

Anupama Tripathi ने कहा…

गहन और प्रभावी .....

सीमा स्‍मृति ने कहा…

बहुत खूब । ये भी रिश्‍ते का एक रूप है