वक़्त बेख़ौफ़ चलता रहे साल दर साल
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वक़्त
साल दर साल, सदी दर सदी, युग दर युग
चलता रहा, बीतता रहा, टूटता रहा
कभी ग़म गाता
कभी मर्सिया पढ़ता
कभी ख़ौफ़ के चौराहे पर काँपता
कभी मासूम इंसानी ख़ून से रंग जाने पर
असहाय ज़ार-ज़ार रोता
कभी पर्दानशीनों की कुचली नग्नता पर बिलखता
कभी हैवानियत से हारकर तड़पता
ओह!
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वक़्त
साल दर साल, सदी दर सदी, युग दर युग
चलता रहा, बीतता रहा, टूटता रहा
कभी ग़म गाता
कभी मर्सिया पढ़ता
कभी ख़ौफ़ के चौराहे पर काँपता
कभी मासूम इंसानी ख़ून से रंग जाने पर
असहाय ज़ार-ज़ार रोता
कभी पर्दानशीनों की कुचली नग्नता पर बिलखता
कभी हैवानियत से हारकर तड़पता
ओह!
कितनी लाचारगी कितनी बेबसी वक़्त झेलता है
फिर चल पड़ता है लड़खड़ाता डगमगाता
चलना ही पड़ता है उसे हर यातनाओं के बाद
नहीं मालूम
थका हारा लहूलुहान वक़्त
चलते-चलते कहाँ पहुँचेगा
न पहला सिरा याद न अंतिम का कोई निशान शेष
जहाँ ख़त्म हो कायनात
ताकि पल भर थमकर सुन्दर संसार की कल्पना में
वक़्त भर सके एक लम्बी साँस
फिर चल पड़ता है लड़खड़ाता डगमगाता
चलना ही पड़ता है उसे हर यातनाओं के बाद
नहीं मालूम
थका हारा लहूलुहान वक़्त
चलते-चलते कहाँ पहुँचेगा
न पहला सिरा याद न अंतिम का कोई निशान शेष
जहाँ ख़त्म हो कायनात
ताकि पल भर थमकर सुन्दर संसार की कल्पना में
वक़्त भर सके एक लम्बी साँस
और कहे उन सारे ख़ुदाओं से
जिसके दीवाने कभी आदमजात हुए ही नहीं
कि ख़त्म कर दो यह खेल
मिटा दो सारा झमेला
न कोई दास न कोई शासक
- जेन्नी शबनम (1. 1. 2015)
जिसके दीवाने कभी आदमजात हुए ही नहीं
कि ख़त्म कर दो यह खेल
मिटा दो सारा झमेला
न कोई दास न कोई शासक
न कोई दाता न कोई याचक
न धर्म का कारोबार
न कोई किसी का पैरोकार
इस ग्रह पर इंसान की खेती मुमकिन नहीं
न धर्म का कारोबार
न कोई किसी का पैरोकार
इस ग्रह पर इंसान की खेती मुमकिन नहीं
न ही संभव है कोई कारगर उपाय
एक प्रलय ला दो कि बन जाए यह पृथ्वी
उन ग्रहों की तरह
जहाँ जीवन के नामोनिशान नहीं
और तब, फिर से बसाओ यह धरती
उगाओ इंसानी फ़सल
जिनके हों बस एक धर्म
जिनकी हो बस एक राह
सर्वत्र खिले फूल ही फूल
उन ग्रहों की तरह
जहाँ जीवन के नामोनिशान नहीं
और तब, फिर से बसाओ यह धरती
उगाओ इंसानी फ़सल
जिनके हों बस एक धर्म
जिनकी हो बस एक राह
सर्वत्र खिले फूल ही फूल
चमकीले-चमकीले तारों जैसे
और वक़्त बेख़ौफ़ ठठाकर हँसता रहे
और वक़्त बेख़ौफ़ ठठाकर हँसता रहे
संसार की सुन्दरता पर मचलता रहे
झूमते नाचते चलता रहे
साल दर साल
झूमते नाचते चलता रहे
साल दर साल
सदी दर सदी
युग दर युग।
युग दर युग।
- जेन्नी शबनम (1. 1. 2015)
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6 टिप्पणियां:
चलते हुए वक्त के गहरे दाग ... लाजवाब रचना ...
नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...
UTTAm Rachna Ke Liye Badhaaee Shabnam ji .
सुन्दर!
आपका नव वर्ष मंगलमय हो!
beautiful lines... समय कभी किसी के लिए नहीं रुकता...
http://prathamprayaas.blogspot.in/- बिना हाथों की पहली महिला पायलेट – “जेसिका कॉक्स”
दिल में उतरने वाली कविता...सुन्दर
बहुत सुन्दर
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