शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

530. पुकार (क्षणिका)

पुकार

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हाँ! मुझे मालूम है  
एक दिन तुम याद करोगे  
मुझे पुकारोगे पर मैं नहीं आऊँगी  
चाहकर भी न आ पाऊँगी  
इसलिए जब तक हूँ क़रीब रहो
ताकि उस पुकार में ग्लानि न हो  
महज़ दूरी का गम हो

- जेन्नी शबनम (4. 11. 2016)
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5 टिप्‍पणियां:

Onkar ने कहा…

सही कहा

HindIndia ने कहा…

बहुत ही उम्दा .... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)

PRAN SHARMA ने कहा…

Bahut Khoob , Shabnam Ji . Aapki Lekhni yun Hee Badhiya Chaltee Rahe .
Shubh Kamnaayen .

Onkar ने कहा…

सुन्दर कविता

Unknown ने कहा…

सही कथन।