मन्त्र
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अपनी पीर छुपाकर जीना
मीठे कहकर आँसू पीना
ये दस्तूर निभाऊँ कैसे
जिस्म है घायल छलनी सीना।
रिश्ते-नाते निभ नहीं पाते
करें शिकायत किसकी किससे
गली-चौबारे ख़ुद में सिमटे
दरख़्त हुए सब टुकड़े-टुकड़े।
मृदु भावों की बली चढ़ाकर
मतलबपरस्त हुई ये दुनिया
ख़िदमत में मिट जाओ भी गर
कहेगी क़िस्मत सोई ये दुनिया।
बेग़ैरत हूँ, कहेगी दुनिया
गर ख़िदमत न कर ख़ुद को सँवारा
साथ नहीं कोई ब्रह्म या बाबा
पीर-पैग़म्बर का नहीं सहारा।
पीर पराई कोई न समझे
मर-मरकर छोड़ो यों जीना
ख़त्म करो अब हर ताल्लुक़ को
मन्त्र ये जीवन का दोहराना।
यों ही अब दुनिया में रहना
यों ही अब दुनिया से जाना
ख़त्म करो अब हर ताल्लुक़ को
मन्त्र ये जीवन का दोहराना।
-जेन्नी शबनम (25.5.2020)
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11 टिप्पणियां:
सच है सम्बंध बना रहे और अच्छा हो सके ... जीवन मंत्र तो यही है ... भाव पूर्ण रचना ...
संवेदनाओं की बली चढ़ाकर
मतलबपरस्त हो गई दुनिया
सटिक रचना
आज की दुनिया की सही तस्वीर खींची है।
जीने का मन्त्र जिसे आ जाये, वह सब जीत लेता है.
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (27-05-2020) को "कोरोना तो सिर्फ एक झाँकी है" (चर्चा अंक-3714) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब... ,कोई पीर -पैगंबर नहीं अपना सहारा आप होना होता है,लाज़बाब सृजन शबनम जी ,सादर नमस्कार
अच्छी कविता।
सुन्दर सृजन
सुन्दर प्रस्तुति
वाह!बदलाव को क्या बख़ूबी रचा है आपने आदरणीय दीदी.
सादर
पूरी कविता बहुत सुंदर ,बधाई हो सादर नमन
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