शुक्रवार, 26 जून 2020

675. रीसेट

रीसेट

*** 

हयात के लम्हात, दर्द में सने थे   
मेरे सारे दिन-रात, आँसू से बने थे   
नाकामियों, नादानियों और मायूसियों के तूफ़ान   
मन में लिए बैठे थे 
वक़्त से सुधारने की गुहार लगाते-लगाते   
बेज़ार जिए जा रहे थे   
हम थे पागल 
जो माज़ी से प्यार किए जा रहे थे। 
  
कल वक़्त ने कान में चुपके से कहा-   
सारे कल मिटाकर, नए आज भर लो    
वक़्त अब भी बचा है 
ज़िन्दगी को रीसेट कर लो
जितनी बची है 
उतनी ज़िन्दगी भरपूर जी लो। 
   
दर्द को खा लो, आँसू को पी लो   
सारे कल मिटाकर, नए आज भर लो   
वक़्त अब भी बचा है 
ज़िन्दगी को रीसेट कर लो।   

-जेन्नी शबनम (26.6.2020) 
_____________________

6 टिप्‍पणियां:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर = RAJA Kumarendra Singh Sengar ने कहा…

काश कि ज़िन्दगी को रीसेट कर सकते तो सबसे पहले हम ही कर लेते.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत ख़ूब ... कई बार जीवन में सब कुछ भुलाना अच्छा होता है ... रीसेट कर सकें तो कितना सुख मिल जाए पर यादें इनका क्या ...

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

काश! Reset, edit जैसी सुविधाएं ज़िन्दगी हमें दे पाती। बहुत अच्छी कविता।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और सन्देशप्रद रचना।

Onkar ने कहा…

सुन्दर रचना

Jyoti Singh ने कहा…

बेहद खूबसूरत रचना ,आपकी मुस्कान की तरह