बुधवार, 8 जुलाई 2020

677. इतनी-सी फ़िक्र

इतनी-सी फ़िक्र

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दो चार फ़िक्र हैं जीवन के   
गर मिले कोई राह, चले जाओ   
बेफ़िक्री लौटा लाओ। 
   
कह तो दिया कि दूर जाओ   
निदान के लिए सपने न देखो   
राह पर बढ़ो, बढ़ते चले जाओ   
वहाँ तक जहाँ पृथ्वी का अन्त है   
वहाँ तक जहाँ कोई दुष्ट या संत है   
बस इन्सान नहीं है 
प्यार से कोई पहचान नहीं है   
या वहाँ जहाँ क्षितिज पर आकाश से मिलती है धरा   
या वहाँ जहाँ गुम हो जाए पहचान, न हो कोई अपना। 
   
मत सोचो देस-परदेस   
भूल जाओ सब तीज-त्योहार   
बिसरा दो सब प्यार-दुलार   
लौट न पाओ कभी   
मिल न पाओ अपनों से कभी   
यह पीर मन में बसाकर रखना   
पर हिम्मत कभी न हारना   
यायावर-सा न भटकना    
दिग्भ्रमित न होना तुम   
अकारण और नहीं रोना तुम   
एक ठोस ठौर ढूँढकर   
सपनों में हमको सजा लेना   
मन में लेकर अपनों की यादें   
पूरी करना बुनियादी ज़रूरतें। 
   
आस तो रहेगी तुम्हें   
अपने उपवन की झलक पाने की   
कुटुम्बों संग जीवन बिताने की   
वंशबेल को देखने की   
प्रियतमा के संग-साथ की   
मिलन की किसी रात की   
पर समय की दरकार है   
तक़दीर की यही पुकार है। 
   
कोई उम्मीद नहीं, कोई आस नहीं   
किसी पल पर कोई विश्वास नहीं   
रहा-सहा सब पिछले जन्म का भाग्य है   
इस जन्म का इतना ही इन्तिज़ाम है   
बाक़ी सब अगले जन्म का ख़्वाब है। 
   
निपट जाए जीवन-भँवर, बस इतना ही हिसाब है   
चार दिन का जीवन, दो जून की रोटी   
बदन पर दो टुक चीर, फूस का अक्षत छप्पर   
बस इतनी-सी दरकार है   
बस इतनी-सी तो बात है।   

-जेन्नी शबनम (7.7.2020) 
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12 टिप्‍पणियां:

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

आह! अच्छी कविता। दो टूक चीर, छप्पर बस इतनी सी बात है लेकिन दुनिया न जाने किस चीज़ के पीछे भाग रही है।

अजय कुमार झा ने कहा…

आपके शब्दों का चयन अनुपम होता है | बेहतरीन पंक्तियाँ | बहुत ही कांटे की बात। बस इतनी सी ही तो बात है

Bharti ने कहा…

Mam your poem is very sweet and meaningful

Onkar ने कहा…

बहुत खूब

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर रचना।

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (११-०७-२०२०) को 'बुद्धिजीवी' (चर्चा अंक- ३५६९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी

Sweta sinha ने कहा…

बहुत सुंदर अर्थ पूर्ण रचना।

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

सुंदर रचना। जरूरतें तो कम ही होती हैं लेकिन हम चाहतों के पीछे पीछे अपनी जिंदगी बिता देते हैं। जरूरतों को अगर समझ लिया जाए तो जिंदगी बहुत खुशनुमा हो जाएगी।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर सृजन

Rakesh ने कहा…

शब्द चयन बहुत बेहतर है

मन की वीणा ने कहा…

शानदार सृजन! इतनी सी बात इतनी सी फ्रिक
सुंदर प्रस्तुति।

Navin Bhardwaj ने कहा…

इस बेहतरीन लिखावट के लिए हृदय से आभार Appsguruji(जाने हिंदी में ढेरो mobile apps और internet से जुडी जानकारी )