भोर की वेला
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1.
माँ-सी जगाएँ
सुनहरी किरणें
भोर की वेला।
2.
पाखी की टोली
भोरे-भोरे निकली
कर्म निभाने।
3.
किरणें बोलीं-
जाओ, काम पे जाओ
पानी व पाखी।
4.
सूरज जागा
आँख मिचमिचाता
जग भी जागा।
5.
नया जीवन,
प्रभात रोज़ देता
शुभ संदेश।
6.
मन सोचता-
पंछी-सा उड़ पाता
छूता अम्बर।
7.
रोज रँगता
प्रकृति चित्रकार
अद्भुत छटा।
-जेन्नी शबनम (24.1.2021)
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12 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया
सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 29-01-2021) को
"जन-जन के उन्नायक"(चर्चा अंक- 3961) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
आपकी मनोहारी पंक्तियाँ भोर का सुन्दर दृश्य बिखेर गई आँखों में
बहुत सुन्दर और सारगर्भित हाइकु।
वाह!बहुत ही सुंदर हाइकु।
सादर
बहुत ही सुंदर हायकु।
प्रभावशाली लेखन।
अति सुंदर । अद्भुत विधा का श्रेष्ठ उपयोग किया है आपने ।
बहुत ही सुंदर सृजन।
बढ़िया सृजन
कमाल के हाइकू हैं सभी ...
सुबह की किरणों भोर के आगमन से जुड़े ... भावपूर्ण हाइकू ...
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