प्रेम में होना
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प्रेम की पराकाष्ठा कहाँ तक
बदन के घेरों में या मन के फेरों में?
सुध-बुध बिसरा देना प्रेम है
या स्वयं का बोध होना प्रेम है।
अनकहा प्रेम भी होता है
न मिलाप, न अधिकार
पर प्रेम है कि बहता रहता है
अविरल और अविचलित।
प्रेम की परिभाषाएँ ढेरों गढ़ी गईं
पर सबसे सटीक कोई नहीं
अपने-अपने मन की आस्था
अपने-अपने प्रेम की अवस्था।
प्रेम अक्सर पा तो लिया जाता है
पर वह लेन-देन तक सिमट जाता है
हम सभी भूल गए हैं प्रेम का अर्थ
लालसा में भटकता जीवन है व्यर्थ
प्रेम का मूल तत्त्व बिसर गया है
स्वार्थ की परिधि में प्रेम बिखर गया है।
प्रेम पाया नहीं जाता
प्रेम जबरन नहीं होता
प्रेम किया नहीं जाता
प्रेम में रहा जाता है
प्रेम जीवन है
प्रेम जिया जाता है।
-जेन्नी शबनम (18.4.2021)
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11 टिप्पणियां:
वाह
ठीक कहा आपने।
बहुत सुन्दर रचना।
विचारों का अच्छा सम्प्रेषण किया है
आपने इस रचना में।
प्रेम जिया जाता है .... बहुत खूब । सुंदर अभिव्यक्ति
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२१-०४-२०२१) को 'प्रेम में होना' (चर्चा अंक ४०४३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आदरणीया मैम, प्रेम और जीवन, दोनों को परिभाषित करती एक अत्यंत सुंदर रचना। सच प्रेम में जिया गया जीवन सब से सुखद और सुंदर होगा , बस हमें उस तरह जीना आ जाए । इस अत्यंत सुंदर रचना के लिए हार्दिक आभार।
सच है ... प्रेम जिया जाता है ... प्रेम में रहा जाता है ...
प्रेम हो जाता है ... गहरा आंकलन ....
सुन्दर प्रस्तुति
वाकई प्रेम ही जीवन है, जीने की प्रक्रिया में यदि प्रेम न हो तो जीवन बोझ बन जाता है
बहुत सुंदर भाव, प्रेम और जीवन का सुन्दर जुड़ाव , प्रेम नहीं तो नीरस जीवन
प्रेम का मूल तत्व बिसर गया है
स्वार्थ की परिधि में प्रेम बिखर गया है,
बिलकुल सही कहा आपने,प्रेम का तो रूप ही बिगड़ गया।
हम परिभाषा ढूढ़ते रहे और यहां प्रेम का आस्तित्व ही समाप्त हो गया।
अब प्रेम नहीं लेन -देन है,प्रेम की सुंदर व्याख्या,सादर नमन आपको
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