रविवार, 4 जुलाई 2021

731. प्यारी नदियाँ (36 हाइकु)

प्यारी नदियाँ (36 हाइकु)

*** 

1. 
नद से मिली   
भोरे-भोरे किरणें   
छटा निराली।   

2. 
गंगा पावन    
नहीं होती अपावन   
भले हो मैली।   

3. 
नदी की सीख-   
हर क्षण बहना   
नहीं थकना।   

4. 
राजा या रंक   
सबके अवशेष   
नदी का अंक।   

5. 
सदा हरती   
गंगा पापहारिणी   
जग के पाप।   

6. 
नदी का धैर्य   
उसकी विशालता,   
देती है सीख।   

7. 
दुःखहारिणी   
गंगा निर्झरनी   
पापहारिणी।   

8. 
अपना प्यार   
बाँटती धुआँधार   
प्यारी नदियाँ।   

9. 
सरिता-घाट   
तन अग्नि में भस्म   
अन्तिम सत्य।   

10. 
सबके छल   
नदी है समेटती   
कोई न भेद।   

11. 
सरजू-तीरे   
महाकाव्य-सर्जन   
तुलसीदास।   

12. 
तड़पी नदी   
सागर से मिलने,   
मानो हो पिया।   

13. 
बेपरवाह   
मिलन को बेताब   
नदी बावरी।   

14. 
सिन्धु से मिली   
सर्प-सी लहराती   
नदी लजाती।   

15. 
नदियाँ प्यासी   
प्रकृति का दोहन   
इन्सान पापी।   

16. 
तीन नदियाँ   
पुराना बहनापा   
साथ फिरतीं।   

17. 
बढ़ी आबादी   
कहाँ से लाती पानी   
नदी बेचारी।   

18. 
नदी का तट   
सभ्यता व संस्कृति   
सदियाँ जीती।   

19. 
मीन झाँकती,   
पारदर्शी लिबास   
नदी की कोख।   

20. 
खूब निभाती   
वर्षा से बहनापा   
साथ नहाती।   

21. 
बूझो तो कौन?   
खाती-ओढ़ती जल   
नदी और क्या!   

22. 
कोई न सुना   
बिलखती थी नदी   
पानी के बिना।   

23. 
नदी के तीरे   
देवताओं का घर   
अमृत भर।   

24. 
नदी बहना!   
साथ लेके चल ना   
घूमने जग।   

25. 
बाढ़ क्यों लाती?   
विकराल बनके   
क्यों हो डराती?   

26. 
चन्दा-सूरज   
नदी में नहाकर   
काम पे जाते।   

27.   
मिट जाएगा   
तुम बिन जीवन,   
न जाना नदी!   

28. 
दूर न जाओ   
नदी, वापस आओ   
मत गुस्साओ।   

29. 
डूबा जो कोई   
निरपराध नदी   
फूटके रोई।   

30. 
हो गईं मैली   
बेसहारा नदियाँ   
कैसे नहाए?   

31. 
बहती नैया   
गीत गाए खेवैया   
शांत दरिया।   

32. 
पानी दौड़ता   
तटबन्ध तोड़के,   
क्रोधित नदी।   

33. 
तुझमें डूबे   
सोहनी-महिवाल   
प्यार का अन्त।   

34. 
नदियाँ सूखी,   
बदरा बरस जा!   
उनको भिगा।   

35. 
अपनी पीर   
सिर्फ़ सागर से क्यों   
मुझे भी कह।   

36. 
मीन मरती   
पी ज़हरीला पानी   
नदियाँ रोती।   

-जेन्नी शबनम (13.5.2021)
('अप्रमेय' (2021), डॉ. भीकम सिंह जी द्वारा संपादित पुस्तक में प्रकाशित) 
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15 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वाह , सभी हाइकु सुंदर । नदी की व्यथा कथा कहते हुए ।

Onkar ने कहा…

बहुत ही सुंदर

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी लिखी रचना सोमवार 5 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरूप

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

गंगा को समर्पित बहुत सुंदर सारगर्भित हाइकु।

Sweta sinha ने कहा…

कम शब्दों में संपूर्ण अभिव्यक्ति।
सुंदर हायकु।

जी प्रणाम।
सादर

शुभा ने कहा…

वाह!बेहतरीन ।

Meena Bhardwaj ने कहा…

नदियों की महत्ता और व्यथा व्यक्त करते अत्यंत सुन्दर हाइकु । लाजवाब सृजन ।

Pammi singh'tripti' ने कहा…

सुंदर अर्थपूर्ण हायकु।
सादर

SANDEEP KUMAR SHARMA ने कहा…

कुछ अलग सा लेखन है, कम पंक्तियों में बहुत कुछ कह जाना और सच को बेहद सरलता से व्यक्त कर देना...। बहुत खूब बधाई आपको।

Sudha Devrani ने कहा…

सरिता-घाट
तन अग्नि में भस्म
अंतिम सत्य।
वाह!!!
नदी पर बहुत ही लाजवाब हायकु।

रेणु ने कहा…

अपनी पीर
सिर्फ़ सागर से क्यों
मुझे भी कह।
///////
मीन मरती
पी ज़हरीला पानी
नदियाँ रोती।
बहुत खूब!! लाजवाब हाईकू। हार्दिक शुभकामनाएं जेन्नी जी।

Kamini Sinha ने कहा…

नदी की महत्ता और उसकी व्यथा-कथा कहती लाजबाब हाईकू ,सादर नमन आपको

उषा किरण ने कहा…

चंदा-सूरज
नदी में नहाकर
काम पे जाते।
वाह…सभी हाईकू बढ़िया 👌👌

मन की वीणा ने कहा…

वाह!सरिता,उसका कर्तव्य, उसकी व्यथा पर सुंदर हाइकु।
बधाई।

Radhey ने कहा…

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