हथेली गरम-गरम
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रात हो मतवाली-सी
सपने पके नरम-नरम
सुबह हो प्यारी-सी
दिन हो रेशम-रेशम
मन में चाहे ढेरों संशय
रस्ता दिखे सुगम-सुगम
सुख-दुःख दोनों जीवन है
मन समझे सहज-सहज
जीवन में बना रहे भरम
खुशियाँ हों सब सरल-सरल
कम न पड़े कोई भी छाँव
रिश्ते सँभालो सँभल-सँभल
चाहे गुज़रे कोई पहर
हाथ में एक हथेली गरम-गरम।
- जेन्नी शबनम (12. 10. 2021)
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5 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-10-2021) को चर्चा मंच "फिर से मुझे तलाश है" (चर्चा अंक-4216) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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श्री दुर्गाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सराहनीय प्रस्तुति
वाह
बहुत सुंदर रचना
Wish this utopia could be true!
Bahut sundar panktiyan!
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