दुलारी होली
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1.
दे गया दग़ा
रंगों का ये मौसम,
मन है कोरा।
2.
गुज़रा छू के
कर अठखेलियाँ
मौसमी-रंग।
3.
होली आई
मन ने दग़ा किया
उसे भगाया।
4.
दुलारी होली
मेरे दुःख छुपाई
देती बधाई।
5.
सादा-सा मन
होली से मिलकर
बना रंगीला।
6.
होलिका-दिन
होलिका जल मरी
कमाके पुण्य।
7.
फगुआ मन
जी में उठे हिलोर
मचाए शोर।
8.
छाये उमंग
खिलखिलाते रंग
बसन्ती मन।
9.
ख़ूब बरसे
ज्यों दरोगा की लाठी
रंग-अबीर।
10.
बिन रँगे ही
मन हुआ बसन्ती
रुत है प्यारी।
11.
कैसी ये होली
रिश्ते नाते छिटके
अकेला मन।
12.
छुपके आई
कुंडी खटखटाई
होली भौजाई।
13.
माई न बाबू
मन कैसे हो क़ाबू,
अबकी होली।
14.
अबकी साल
मन हो गया जोगी,
लौट जा होली!
15.
पी ली है भाँग
लड़खड़ाती होली
धप्प से गिरी।
- जेन्नी शबनम (18. 3. 2022)
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5 टिप्पणियां:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१९-०३ -२०२२ ) को
'भोर का रंग सुनहरा'(चर्चा अंक-४३७३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुंदर
आदरणीया डॉ जेबा शबनम जी,नमस्ते👏! बहुत सुंदर हाइकु हैं, होली के खास रंगों में रंगे! आपकी पंक्तियाँ:
बिन रँगे ही
मन हुआ बसन्ती
रुत है प्यारी। बहुत अच्छी हैं। सादर!
रंगों और उमंगों भरी होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!--ब्रजेंद्रनाथ
बहुत सुंदर हायकू।
बहुत सुंदर लघु रचनाएं छोटी पर पूर्ण भाव समेटे।
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