शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

765. चहुँ ओर उल्लास (चोका)

चहुँ ओर उल्लास (चोका)

***

शहर छीने
गाँव का माटी-घर
मिटती रही
देहरी पर हँसी,
मिट गया है
गाछ का चबूतरा,
जो सुनता था
बच्चों-बूढ़ों की कथा
भोर की बेला,
मिटता गया अब
माटी का दीया
भले आए दीवाली
चारो तरफ़
जगमग बिजली।
कोई न पारे
अँखियाों का काजल
कोने में पड़ा
कजरौटा उदास
बाट जोहता
अबकी दीवाली में
कोई तो पारे।
तरसती रहती
गाँव की धूप
कोई न आता पास
सेंकता धूप
न कोई है बनाता
बड़ी-अचार
बाज़ार ने है छीने
देसी मिठास।
विदेशी पकवान
छीने सुगन्ध
खीर-पूरी-मिठाई
बिसरे सब
भूले त्योहारी गंध
फैला मार्केट
केक व चॉकलेट।
नहीं दिखतीं
वह बुढ़िया दादी
सूप मारतीं
दरिद्दर भगातीं,
दुलारी अम्मा
पकवान बनातीं
ओल का चोखा
आलू का है अचार
अहा! क्या स्वाद!
भूले हम संस्कृति
अतीत बनी
पुरानी सब रीति
सारा त्योहार
अब बना व्यापार।
कैसी दीवाली
अपने नहीं पास!
बिसरो दुःख
सजो और सँवरो
दीप जलाओ
मन में भरो आस
चहुँ ओर उल्लास।

-जेन्नी शबनम (10.11.2023)
____________________ 

3 टिप्‍पणियां:

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर शनिवार 11 नवंबर 2023 को लिंक की जाएगी ....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

!

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 11 नवम्बर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह| दीप पर्व की शुभकामनाएं |