ज़ब्त-ए-ग़म
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सुर्ख़ स्याही से सफ़ेद पन्नों पर
लिखी है किसी के ज़ब्त-ए-ग़म की तहरीर।
शब्द के सीने में ज़ब्त है
किसी के जज़्बात की जागीर।
दफ़न दर्द को कुरेदकर
गढ़ी गई है किताब रंगीन।
बड़े जतन से सँभाल रखी है
किसी के अंतर्मन की तस्वीर।
इजाज़त नहीं ज़माने को कि
बाँच सके किसी की तक़दीर।
हश्र तो ख़ुदा जाने क्या हो
जब कोई तोड़ने को हो व्याकुल ज़ंजीर।
नतीजा तो कुछ भी नहीं बस
संताप को मिल जाएगी इक ज़मीन।
दर्द और ज़ख्म से जैसे
रच गई ज़ब्त-ए-ग़म की कहानी हसीन।
गर रो सको तो पढ़ो कहानी
टूटी-बिखरी दफ़न है किसी की मुरादें प्राचीन।
- जेन्नी शबनम (नवम्बर 9, 2008)
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सुर्ख़ स्याही से सफ़ेद पन्नों पर
लिखी है किसी के ज़ब्त-ए-ग़म की तहरीर।
शब्द के सीने में ज़ब्त है
किसी के जज़्बात की जागीर।
दफ़न दर्द को कुरेदकर
गढ़ी गई है किताब रंगीन।
बड़े जतन से सँभाल रखी है
किसी के अंतर्मन की तस्वीर।
इजाज़त नहीं ज़माने को कि
बाँच सके किसी की तक़दीर।
हश्र तो ख़ुदा जाने क्या हो
जब कोई तोड़ने को हो व्याकुल ज़ंजीर।
नतीजा तो कुछ भी नहीं बस
संताप को मिल जाएगी इक ज़मीन।
दर्द और ज़ख्म से जैसे
रच गई ज़ब्त-ए-ग़म की कहानी हसीन।
गर रो सको तो पढ़ो कहानी
टूटी-बिखरी दफ़न है किसी की मुरादें प्राचीन।
- जेन्नी शबनम (नवम्बर 9, 2008)
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