बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

15. ज़िन्दगी रेत का महल

ज़िन्दगी रेत का महल

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ज़िन्दगी रेत का महल है
हर लहर आकर बिखेर जाती है,
सपनों से रेत का महल हम फ़िर बनाते हैं
जानते हैं बिखर जाना है फ़िर भी 

हमारी मौजूदगी के निशान तो रेत पे न मिलेंगे कभी
किसी के दिल में चुपके से इक हूक-सी उठेगी कभी,
ज़ख्म तो पाया हर पग पर हमने
पर टीस उठेगी ज़रूर सीने में किसी के

रेत के महल-सा स्वप्न हमारा
क्या मुमकिन कि समंदर बख़्श दे कभी?
जीवन हो या रिश्ता, वक़्त की लहरों से बह तो जाना है ही
फिर भी सहेजते हैं रिश्ते, बनाते हैं रेत से महल

- जेन्नी शबनम (19. 9. 2008)
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