शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010

185. किसी बोल ने चीर तड़पाया (तुकांत)

किसी बोल ने चीर तड़पाया

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पोर-पोर में पीर समाया
किसने है ये तीर चुभाया  

मन का हाल नहीं पूछा और
पूछा किसने धीर चुराया  

गूँगी इच्छा का मोल ही क्या
गंगा का बस नीर बताया  

नहीं कभी कोई राँझा उसका
फिर भी सबने हीर बुलाया 

न भूली शब्दों की भाषा 'शब'
किसी बोल ने चीर तड़पाया 

- जेन्नी शबनम (29. 10. 2010)
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6 टिप्‍पणियां:

ASHOK BAJAJ ने कहा…

अच्छी रचना , बधाई !

संजय भास्‍कर ने कहा…

gahan bhaav ... behatreen post !!!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

नहीं कभी कोई रांझा उसका
फिर भी सबने हीर बुलाया !

न भूली शब्दों की भाषा ''शब''
किसी बोल ने चीर तड़पाया !


kitni bakhubi se aapne apni baato ko kaha hai...:)
utkrisht .........
ek baat kahun, behsak meri lekhni me wo dhar nahi paa rahi hai, lekin maine ye anubhav kiya hai, aap kahan se kahan pahuch gayeen...:)

badhai jenny di!!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

न भूली शब्दों की भाषा ''शब''
किसी बोल ने चीर तड़पाया !
tadap aur dhairy dono hai isme

Kunwar Kusumesh ने कहा…

खूब लिखा है तुमने शबनम,
अभी अभी मैं पढ़कर आया.

कुँवर कुसुमेश
ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

दिल के दर्द पर वाह नहीं होती
कोई बिन सोचे कुछ कहे तो पीर नहीं होती.