मेरी हथेली
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अपनी एक हथेली तुम्हें सौंप आई
जब तुमसे मिली थी
जिसकी लकीरों में है मेरी तक़दीर
और मेरी तक़दीर सँवारने की तजवीज़।
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अपनी एक हथेली तुम्हें सौंप आई
जब तुमसे मिली थी
जिसकी लकीरों में है मेरी तक़दीर
और मेरी तक़दीर सँवारने की तजवीज़।
एक हथेली अपने पास रख ली
जो वक़्त के हाथों ज़ख़्मी है
जिसकी लकीरों में है मेरा अतीत
और मेरे भविष्य की उलझी तस्वीर।
जो वक़्त के हाथों ज़ख़्मी है
जिसकी लकीरों में है मेरा अतीत
और मेरे भविष्य की उलझी तस्वीर।
विस्मृत नहीं करना चाहती कुछ भी
जो मैंने पाया या खोया
या फिर मेरी वो हथेली
जो तुमने किसी दिन गुम कर दी
क्योंकि सहेजने की आदत तुम्हें नहीं।
- जेन्नी शबनम (4. 10. 2011)
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जो मैंने पाया या खोया
या फिर मेरी वो हथेली
जो तुमने किसी दिन गुम कर दी
क्योंकि सहेजने की आदत तुम्हें नहीं।
- जेन्नी शबनम (4. 10. 2011)
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15 टिप्पणियां:
"जो मैंने पाया या खोया
या फिर मेरी वो हथेली
जो तुमने किसी दिन गुम कर दी
क्योंकि
सहेजने की आदत तुम्हें नहीं!"
लेकिन ये आदत भी कुछ दे जाती है !!
कभी-कभी अपनी पहचान.....!!
खूबसूरत रचना...!!
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ||
शुभ विजया ||
जो तुमने किसी दिन गुम कर दी
क्योंकि
सहेजने की आदत तुम्हें नहीं! bhaut hi khubsurat....
सुन्दर रचना सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई
कुछ भी
जो मैंने पाया या खोया
या फिर मेरी वो हथेली
जो तुमने किसी दिन गुम कर दी
क्योंकि
सहेजने की आदत तुम्हें नहीं!
bahut sunder , bahut hi deep.dil ko chu gayi aapki ye marmik prastuti ...........aabhar
bahut badhiyaa... badhaai
जब भी आपकी कोई भी रचना पढ़ने का अवसर मिला ,एक नई अनुभूति से मन अभिभूत हुआ.। आपके शव्द एवं भाव थोड़े में बहुत कुछ कह जाते हैं । बहुत सुंदर । .मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा ।
धन्यवाद ।
sahejne ki aadat tumhe nahi....bahut khub..
jai hind jai bharat
विस्मृत नहीं करना चाहती
कुछ भी
जो मैंने पाया या खोया
या फिर मेरी वो हथेली
जो तुमने किसी दिन गुम कर दी
क्योंकि
सहेजने की आदत तुम्हें नहीं!
बेहतरीन भावपूर्ण रचना .....
wah......bahot khoobsurat hatheli hai.....
जीवन की विवशता का अनुताप है इस कविता में । जिसको हीरा मिलता है , वह अगर उसकी अहमियत न समझे तो क्या करेगा ? उसे कंकड़ों के ढेर में ही फेंक देगा । उसे क्या प्ता कि किसी का हीरे जैसा हृदय कितने संवेग छुपाए हुए है । जेन्नी शबनम जी की यह कविता भी जीवन की विडम्बन को बखूबी महसूस करा देती है।
bhaut hi khubsurat....
बहुत अच्छी भावपूर्ण प्रस्तुति ...
आहत समर्पण की मन को छूने वाली पंक्तियाँ...सहेजने की आदत तुम्हें नहीं..!
ओह! बड़े खराब हैं वे तो.
लेकिन चलिए एक हथेली तो आपके पास है न.
वक़्त जख्म भी भर दिया करता है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,जेन्नी जी.
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