गुरुवार, 6 अक्टूबर 2011

289. मेरी हथेली

मेरी हथेली

******* 

अपनी एक हथेली तुम्हें सौंप आई
जब तुमसे मिली थी 
जिसकी लकीरों में है मेरी तक़दीर 
और मेरी तक़दीर सँवारने की तजवीज़।   
एक हथेली अपने पास रख ली 
जो वक़्त के हाथों ज़ख़्मी है 
जिसकी लकीरों में है मेरा अतीत 
और मेरे भविष्य की उलझी तस्वीर।   
विस्मृत नहीं करना चाहती कुछ भी 
जो मैंने पाया या खोया 
या फिर मेरी वो हथेली 
जो तुमने किसी दिन गुम कर दी
क्योंकि सहेजने की आदत तुम्हें नहीं। 

- जेन्नी शबनम (4. 10. 2011)
______________________

15 टिप्‍पणियां:

***Punam*** ने कहा…

"जो मैंने पाया या खोया
या फिर मेरी वो हथेली
जो तुमने किसी दिन गुम कर दी
क्योंकि
सहेजने की आदत तुम्हें नहीं!"

लेकिन ये आदत भी कुछ दे जाती है !!
कभी-कभी अपनी पहचान.....!!
खूबसूरत रचना...!!

रविकर ने कहा…

बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ||
शुभ विजया ||

विभूति" ने कहा…

जो तुमने किसी दिन गुम कर दी
क्योंकि
सहेजने की आदत तुम्हें नहीं! bhaut hi khubsurat....

S.N SHUKLA ने कहा…

सुन्दर रचना सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई

amrendra "amar" ने कहा…

कुछ भी
जो मैंने पाया या खोया
या फिर मेरी वो हथेली
जो तुमने किसी दिन गुम कर दी
क्योंकि
सहेजने की आदत तुम्हें नहीं!
bahut sunder , bahut hi deep.dil ko chu gayi aapki ye marmik prastuti ...........aabhar

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut badhiyaa... badhaai

प्रेम सरोवर ने कहा…

जब भी आपकी कोई भी रचना पढ़ने का अवसर मिला ,एक नई अनुभूति से मन अभिभूत हुआ.। आपके शव्द एवं भाव थोड़े में बहुत कुछ कह जाते हैं । बहुत सुंदर । .मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा ।
धन्यवाद ।

SAJAN.AAWARA ने कहा…

sahejne ki aadat tumhe nahi....bahut khub..
jai hind jai bharat

Dr Varsha Singh ने कहा…

विस्मृत नहीं करना चाहती
कुछ भी
जो मैंने पाया या खोया
या फिर मेरी वो हथेली
जो तुमने किसी दिन गुम कर दी
क्योंकि
सहेजने की आदत तुम्हें नहीं!

बेहतरीन भावपूर्ण रचना .....

mridula pradhan ने कहा…

wah......bahot khoobsurat hatheli hai.....

सहज साहित्य ने कहा…

जीवन की विवशता का अनुताप है इस कविता में । जिसको हीरा मिलता है , वह अगर उसकी अहमियत न समझे तो क्या करेगा ? उसे कंकड़ों के ढेर में ही फेंक देगा । उसे क्या प्ता कि किसी का हीरे जैसा हृदय कितने संवेग छुपाए हुए है । जेन्नी शबनम जी की यह कविता भी जीवन की विडम्बन को बखूबी महसूस करा देती है।

विभूति" ने कहा…

bhaut hi khubsurat....

रजनीश तिवारी ने कहा…

बहुत अच्छी भावपूर्ण प्रस्तुति ...

Prem Prakash ने कहा…

आहत समर्पण की मन को छूने वाली पंक्तियाँ...सहेजने की आदत तुम्हें नहीं..!

Rakesh Kumar ने कहा…

ओह! बड़े खराब हैं वे तो.

लेकिन चलिए एक हथेली तो आपके पास है न.
वक़्त जख्म भी भर दिया करता है.

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,जेन्नी जी.