आदमज़ाद की बात नहीं
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प्यार की उम्र क्या होती है?
साथ जीने की शर्त क्या होती है?
अजब सवाल पूछते हो
प्यार की उम्र कभी ख़त्म नहीं होती
प्यार में कोई शर्त नहीं होती।
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प्यार की उम्र क्या होती है?
साथ जीने की शर्त क्या होती है?
अजब सवाल पूछते हो
प्यार की उम्र कभी ख़त्म नहीं होती
प्यार में कोई शर्त नहीं होती।
फिर यह कैसा प्यार
हर बार एक नई, अनकही शर्त
जिसे मान लेना होता है।
हर बार एक नई, अनकही शर्त
जिसे मान लेना होता है।
उम्र के ढलान पर
तुम्हारी निगाहें किसे ढूँढती हैं?
साथ तो होते हैं
तुम्हारी निगाहें किसे ढूँढती हैं?
साथ तो होते हैं
लेकिन उबलती शिराएँ
समझते हो न, सहन नहीं होती।
समझते हो न, सहन नहीं होती।
सारी शर्तों को मानते हुए
हर अनकहा समझते हुए
फिर ऐसा क्यों?
हर अनकहा समझते हुए
फिर ऐसा क्यों?
हाँ! सच है
रूह से रूह की बात
परी कथाओं की बात है
आदमज़ाद की बात नहीं।
- जेन्नी शबनम (10.12.2011)
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12 टिप्पणियां:
सच है
रूह से रूह की बात
परी कथाओं की बात है
आदम जात की बात नहीं !
.... यह शायद प्रायः हर स्त्री का सच है
pyyar ki paribhashaahi alag hai baat adam jati ki nahee ,sachchee kavita
रूह से रूह की बात सचमुच परीकथाएँ ही हैं आज के दौर में... जब आपस में भी संवाद की संभावनाएं क्षीण नज़र आती हैं... रूह से रूह की बात तो आकाश कुसुम है ही!
सच कहा आपने जेन्नी जी । प्यार का उम्र से कोई सम्बन्ध नहीं होता । स्वार्थ और शर्त भी कभी प्यार का धार नहीं बन पाते । अपने हितचिन्तक को मन में प्राणों मे।म महसूस करना ही प्यार है। यह प्यार भी कभी भी किसी को भी पूरा नहीं मिलता , अदूरे में आदमी को सन्तोष नहीं । आपकी ये पंक्तिया इसी सांसारिक प्यार की उधेरबुन को बहुत तन्मयता से व्याख्यायित करती हैं-प्यार कि उम्र कभी ख़त्म नहीं होती
प्यार में कोई शर्त नहीं होती !
फिर ये कैसा प्यार
हर बार एक नयी अनकही शर्त
जिसे मान लेना होता है,
उम्र के ढलान पर
तुम्हारी निगाहें किसे ढूँढती हैं ?
साथ तो होते हैं लेकिन
उबलती शिराएँ
समझते हो न
सहन नहीं होती,
सारी शर्तों को मानते हुए
हर अनकहा समझते हुए
फिर ऐसा क्यों?
बहुत सुन्दर भावो को संजोया है………कुछ ऐसी भी बातें होती हैं जो अनकही ही रहती हैं।
प्यार कि उम्र कभी ख़त्म नहीं होती
प्यार में कोई शर्त नहीं होती !
bahut bada sach......
शर्तों पे प्यार ...नहीं,बस....व्यापार होता है
जब रूह से रूह मिल जाएँ तो प्यार में कुछ शर्त ही नहीं होगी .....सही कहा आपने
vandana ji ki baat se poorntah sahamat hoon samay mile aapko kabhi to aaiyega meri post par aapka svagat haihttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
फिर ये कैसा प्यार
हर बार एक नयी अनकही शर्त
जिसे मान लेना होता है,
उम्र के ढलान पर
तुम्हारी निगाहें किसे ढूँढती हैं ?
साथ तो होते हैं लेकिन
उबलती शिराएँ
समझते हो न
सहन नहीं होती,
प्यार का दम भरने वाले जब खुद ही प्यार पर तोहमत लगाने लगें और प्यार भी खुद की शर्तों पर करें तो परेशनियाँ तभी से शुरू हो जाती हैं..खुद को तो जैसे हैं वैसे ही स्वीकारने की बात करते हैं लेकिन जब स्वीकार करने की बात आती हैं साथी की तो सारे आदर्श धरे रह जाते हैं...और दुनिया बस "मैं" तक सिमट के रह जाती है....!!
फिर बात चाहे शरीर की हो या विचारों की...एक सा रुख..एक सा रवैया...!!
बहरहाल.....कविता बहुत खूबसूरत है..बधाई स्वीकार हो....
वाह क्या बात है खूबसूरत रचना ,
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने।
सादर
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जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है
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