जाने कहाँ गई वो लड़की
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जिसपे लाल-लाल फूल सजे
उछलती-कूदती, जाने कहाँ गई वो लड़की।
बकरी का पगहा थामे, खेतों के डरेर पर भागती
जाने क्या-क्या सपने बुनती, एक अलग दुनिया उसकी।
भक्तराज को भकराज कहती
क्योंकि क-त संयुक्त में उसे 'क' दिखता है
उसके अपने तर्क, अजब जिद्दी लड़की।
बात बनाती ख़ूब, पालथी लगाकर बैठती
क़लम दवात से लिखती रहती, निराली दुनिया उसकी।
एक रोज़ सुना शहर चली गई, गाँव की ख़ुशबू साथ ले गई
उसके सपने उसकी दुनिया, कहीं खो गई लड़की।
साँकल की आवाज़, किवाड़ी की चरचराहट
जानती हूँ वो नहीं, पर इंतज़ार रहता अब भी।
शायद किसी रोज़ धमक पड़े, रस्सी कूदती-कूदती
दही-भात खाने को मचल पड़े, वो चुलबुली लड़की।
जाने कहाँ गई, वो मानिनी मतवाली
शायद शहर के पत्थरों में चुन दी गई
उछलती-कूदती वो लड़की।
- जेन्नी शबनम (14. 11. 2011)
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17 टिप्पणियां:
लगता है आपने अपनी ही कहानी बयां की है,जेन्नी जी.
आपकी प्रस्तुति बेहद भावपूर्ण और मन को छूती है.
प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार आपका.
yahee aas paas hee hai wo ladkee bas mahsoos karne kee baat hai
kai baar uski rundhi awaaz suni hai ... per jane kis deewar mein kaid hai wah ladki ...
प्रभावी प्रस्तुति ||
बधाई ||
यहीं कहीं है। हर कहीं है।
साधारण जीवन जिस निश्छलता से भरा होता है , वह सादगी और भोलापन इस कविता में उतर आया है । शहर की भागदौड़ में वह भोलापन न जाने कहां खो गया । जेन्नी शबनम जी ने अपनी चित्रात्मक एवं आत्मीय स्पन्दन की भाषा में उसे जीवन्त कर दिया है । ये पंक्तियां तो बहुत मनमोहक हैं-
कहीं खो गई लड़की !
साँकल की आवाज़
किवाड़ी की चरचराहट,
जानती हूँ वो नहीं
पर इंतज़ार रहता अब भी !
शायद किसी रोज़ धमक पड़े
रस्सी कूदती-कूदती,
दही-भात खाने को मचल पड़े
वो चुलबुली लड़की !
shahar ki chakachaundh me kho gai gaon ki masumiyat.bahut sundar bhaav samet rakhe hain is rachna ne.bahut khoob.
शबनम जी...बेहतरीन प्रस्तुति ..!
मेरे ब्लॉग पे आपका हार्दिक स्वागात है !
शायद शहर के पत्थरों में चुन दी गई
उछलती-कूदती वो लड़की …………आह! क्या कहूँ अब?
बहुत ही सुंदर भावों से सजी भावपूर्ण रचना...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
वह लड़की कहीं नहीं खोई है...वह तो हमारे बीच ही है उन दिनों को याद करती हुई:))सच कहा न मैंने:)
बहुत ही सुन्दर रचना ...
शब्दों की प्रवाहमय वह लड़की और उसकी सहजता ...अनुपम प्रस्तुति।
Bahut acchhee rachna .. Kitni hi aisi paagal mast ladkiyan kho jaati hain shahron ke in pathreele raaston pe ....
शायद शहर के पत्थरों में चुन दी गई
उछलती-कूदती वो लड़की
....बहुत सुंदर...आज के बदलते मूल्यों की सटीक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
वाह! से ओsह तक ले जाती अंतर्स्पर्शी रचना...
सादर..
भक्तराज को भकराज कहती
क्योंकि क-त संयुक्त में पहले क दीखता है,
wah......bahot achchi.
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