गुरुवार, 12 जुलाई 2012

354. जीवन-शास्त्र

जीवन-शास्त्र

***

सुना है 
गति और परिवर्तन ज़िन्दगी है
और यह भी कि 
जिनमें विकास और क्रियाशीलता नहीं 
वो मृतप्राय हैं। 
 
फिर मैं?
मेरा परिवर्तन ज़िन्दगी क्यों नहीं था?
अब मैं स्थिर और मौन हूँ
मुझमें कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं
और न गतिशील हूँ। 
   
सुना है 
अब मैं सभ्य-सुसंस्कृत हो गई हूँ  
सम्पूर्णता से ज़िन्दगी को भोग रही हूँ 
गुरुओं का मान रखा है। 

भौतिक परिवर्तन, रासायनिक परिवर्तन
कोई मंथन नहीं, कोई रहस्य नहीं
भौतिक, रासायनिक और सामाजिक शास्त्र 
जीवन-शास्त्र नहीं। 

-जेन्नी शबनम (12.7.2012)
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19 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

गहन ...सुंदर अभिव्यक्ति ...बहुत अच्छी लगी रचना ...!!
शुभकामनायें.

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह...
बहुत खूब..

अनु

Rakesh Kumar ने कहा…

अब मैं स्थिर और मौन हूँ मुझमें कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं और न गतिशील हूँ,

प्रश्न है कि 'मैं' कौन हूँ ?

क्या मैं शरीर हूँ जिसमें हर क्षण भौतिक
और रासायनिक परिवर्तन हो रहें हैं,जो
बचपन से बुढापे की ओर निरंतर अग्रसर
होता हुआ एक दिन मृत हो जाने वाला है.

क्या मैं मन हूँ,जिसमें भाव समुन्द्र हिलोरे
ले रहा है.

या मैं 'विचार' करने वाली बुद्धि हूँ.

या शरीर,मन और बुद्धि से परे मैं स्थिर,
मौन,और शांत सत्ता हूँ जो अपनी बुद्धि,
मन ,और शरीर में हो रहे परिवर्तनों का दृष्टा
बन जीवन शास्त्र की रचना में रत हूँ.

आपकी प्रस्तुति दार्शनिक और अध्यात्मिक रूप से गहन और विचारणीय है.

बहुत बहुत आभार,जेन्नी जी.

रविकर ने कहा…

आपकी प्रस्तुति का असर ।

बनी है शुक्रवार की खबर ।

उत्कृष्ट प्रस्तुति चर्चा मंच पर ।।

आइये-

सादर ।।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

मेरा परिवर्तन जिन्दगी क्यों नहीं था?
अब मैं स्थिर और मौन हूँ
मुझमें कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं
और न गतिशील हूँ,

बहुत भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति,,,,

RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये निर्वाण की स्थिति भी तो पूर्णता की स्थिति है ... जीवन की क्रियाशीलता भी तो इसी स्थिति कों पाने के लिए ही है ...

PRAN SHARMA ने कहा…

JENNY I , AAPKO PADHNAA MUJHE HAMESHA
ACHCHHAA LAGTA HAI . AAPKEE KAVITA
` JEEWAN SHASTR ` PADH GYAA HUN .
SACHMUCH JEEWAN MEIN KABHEE - KABHEE
AESAA BHEE MAHSOOS HOTAA HAI JAESAA
AAPNE KAHAA HAI -

AB MAIN SABHYA-SUSANSKRIT HO GYEE HUN
SAMPOORNTA MEIN ZINDGI KO BHOG RAHI HUN

रजनीश तिवारी ने कहा…

भौतिक-रसायन से अलग ही है जीवन का शास्त्र ...सुंदर रचना

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

भौतिक, रासायनिक और सामाजिक शास्त्र
जीवन शास्त्र नहीं ....

सच कहा... सार्थक विवेचन...
सादर.

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

बढ़िया भाव...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

परिवर्तन ही ज़िन्दगी, आयेंगे बदलाव।
अनुभव के पश्चात ही, आता है ठहराव।।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ये शब्द शब्द परिवर्तित ज़िन्दगी के ही पड़ाव हैं

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

अच्छी रचना
बहुत सुंदर

RADHIKA ने कहा…

बहुत सुंदर कविता ..मेरा परिवर्तन जिन्दगी क्यों नहीं था?
अब मैं स्थिर और मौन हूँ,अब मैं सभ्य-सुसंस्कृत हो गई हूँ
सम्पूर्णता से जिन्दगी को भोग रही हूँ
गुरुओं का मान रखा है,
ये पंक्तियाँ दिल को छू गयी

Ramakant Singh ने कहा…

भौतिक, रासायनिक और सामाजिक शास्त्र
जीवन शास्त्र नहीं ....


बहुत खूब..

Harash Mahajan ने कहा…

बहूत सुंदर जेन्नी जी ...

kshama ने कहा…

अब मैं स्थिर और मौन हूँ
मुझमें कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं
और न गतिशील हूँ,
सुना है
अब मैं सभ्य-सुसंस्कृत हो गई हूँ
Behad gahree tatha sahee baat kahee aapne....inhee halaat se guzar rahee hun...maun ho gayee hun...

Mahi S ने कहा…

बहुत खूब..

Madhuresh ने कहा…

गहन, दार्शनिक.
बहुत आभार इस कविता के लिए...
सादर
मधुरेश