रविवार, 8 मार्च 2009

36. एक गीत तुम गाओ न

एक गीत तुम गाओ न

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एक गीत तुम गाओ न!
एक ऐसा गीत गाओ कि -
मेरे पाँव उठ चल पड़े, घायल पड़े हैं कब से
हाथों में ताक़त आ जाए, छीन लिए गए हैं बल से
पंख फिर उग जाए, कतर दिए गए हैं छल से
सपनों को ज़मीं मिल जाए, उजाड़े गए हैं सदियों से
आत्मा जी जाए, मारी गई हैं युगों से। 

तुम गाओगे न ऐसा गीत?
एक ऐसा गीत ज़रूर गाना!

मैं रहूँ न रहूँ
पर तुम्हारे गीत से जब भी कोई जी उठे -
मैं उसके मन में जन्मूँगी
तुम्हारे गीत गुनगुनाऊँगी
स्वछंद आकाश में उडूँगी
प्रेम का जहान बसाऊँगी
युगों से बेजान थी, सदियों तक जीऊँगी। 

तुम गाओगे न ऐसा एक गीत?
मेरे लिए गा दो न एक गीत! 

- जेन्नी शबनम (8. 3. 2009)
(अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर)
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1 टिप्पणी:

उन्मुक्त ने कहा…

यहां आकर बहुत अच्छा लगा। बहुत सुन्दर कवितायें हैं। जितनी सुन्दर कवितायें उसके अनुरूप टिप्पणियां नहीं हैं। लगता है कि आप हिन्दी फीड एग्रगेटर के साथ पंजीकृत नहीं हैं यदि यह सच है तो उनके साथ अपने चिट्ठे को अवश्य पंजीकृत करा लें। बहुत से लोग आपकी कविताओं का आनन्द ले पायेंगे। हिन्दी फीड एग्रगेटर की सूची यहां है।

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