रविवार, 1 मई 2011

238.तुम अपना ख़याल रखना

तुम अपना ख़याल रखना

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उस सफ़र की दास्तान
तुम बता भी न पाओगे
न मैं पूछ सकूँगी
जहाँ चल दिए तुम अकेले-अकेले
यूँ मुझे छोड़कर
जानते हुए कि तुम्हारे बिना जीना
नहीं आता है मुझको
कठिन डगर को पार करने का
सलीका भी नहीं आता है मुझको
तन्हा जीना 
न मुझे सिखाया न सीखा तुमने
और चल दिए तुम बिना कुछ बताए
जबकि वादा था तुम्हारा
हमसफ़र रहोगे सदा
अंतिम सफ़र में हाथ थामे
बेख़ौफ़ पार करेंगे रास्ता। 

बहुत शिकायत है तुमसे
पर कहूँ भी अब तुमसे कैसे?
जाने तुम मुझे सुन पाते हो कि नहीं?
उस जहाँ में मैं तुम्हारे साथ हूँ कि नहीं?

सब कहते हैं
तुम अब भी मेरे साथ हो
जानती हूँ यह सच नहीं
तुम महज़ एहसास में हो यथार्थ में नहीं
धीरे-धीरे मेरे बदन से तुम्हारी निशानी कम हो रही
अब मेरे ज़ेहन में रहोगे मगर ज़िन्दगी अधूरी होगी
मेरी यादों में जिओगे
साथ नहीं मगर मेरे साथ-साथ रहोगे
। 

अब चल रही हूँ मैं तन्हा-तन्हा
अँधेरी राहों से घबराई हुई
तुम्हें देखने महसूस करने की तड़प
अपने मन में लिए
तुम तक पहुँच पाने के लिए
अपना सफ़र जारी रखते हुए
तुम्हारे सपने पूरे करने के लिए
कठोर चट्टान बनकर
जिसे सिर्फ़ तुम डिगा सकते हो
नियति नहीं
। 

मेरा इंतज़ार न करना
तुहारा सपना पूरा करके ही
मैं आ सकती हूँ
छोड़ कर तुम गए
अब तुम भी
मेरे बिना सीख लेना वहाँ जीना
थोड़ा वक़्त लगेगा मुझे आने में
तब तक तुम अपना ख़याल रखना
। 

- जेन्नी शबनम (1. 5. 2011)
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13 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

saath nahin

magar saath saath rahoge..

wah !

bahut khoob !

anupam kaavya

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

भाव पूर्ण रचना

SAJAN.AAWARA ने कहा…

DIL KO LAGNE WALI BHAVPURN RACHNA. . . . . . . . . . . . . . JAI HIND JAI BHARAT

OM KASHYAP ने कहा…

बहुत खूबसूरत रचना ,शुभकामनाएं

रश्मि प्रभा... ने कहा…

तुम्हारे बिना जीना
नहीं आता मुझको
कठिन डगर को पार करने का
सलीका भी नहीं आता मुझको...
...
सब कहते हैं
तुम अब भी मेरे साथ हो
जानती हूँ ये सच नहीं
तुम महज़ एहसास में हो... chalo apna khyaal rakhna

सहज साहित्य ने कहा…

इस कविता में प्रेम का सागर ठाँठे मार रहा है । दूर होने पर भी यह आत्मिक स्पर्श कितना पावन बन गया है कि- मेरा इंतज़ार न करना
तुहारा सपना पूरा कर के हीं
मैं आ सकती हूँ,
छोड़ कर तुम गए
अब तुम भी
मेरे बिना
सीख लेना वहाँ जीना,
थोड़ा वक़्त लगेगा मुझे आने में
तब तक तुम अपना ख़याल रखना| पूर्व की इन पंक्तियों में असीम आसमान-सा फैला हुआ प्यार है,जिसका कोई ओर -छोर नहीं है । जेन्नी शबनम जी आपकी कविताओं का यह स्वर आपकोबहुत से रचनाकारो। से अलग और विशिष्ट बनाता है । आपकी कविताओं को पढकर यह आशा जगती है कि आज भी हिन्दी में बेहतरीन लिखा जा रहा है ।

PARTHO BARDHAN ने कहा…

Bahut badhiya Bhouji, Raju ka asar dikh raha hai.

PARTHO BARDHAN ने कहा…

Bahut badhiya bhouji. Raju ka asar dikh raha hai.

मनोज कुमार ने कहा…

इस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं।

awesh ने कहा…

अदभुत ,जैसे मन के द्वन्द को रूई के फाहे की तरह पेज पर सजा दिया हो ,ह्रदय के संताप ,उसके दर्द उसकी थकन को क्यूँ नहीं कह पाते लोग इतनी आसान भाषा में जैसे आपने कहा |आपकी हर रचना में एक उम्मीद हमेशा साँसे लेती रहती है ,कभी आपको दर्द से पलायन करते नहीं देखा ये एक बात कविता के साथसाथ आपको भी महान बनाती है |

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
पिछले कई दिनों से कहीं कमेंट भी नहीं कर पाया क्योंकि 3 दिन तो दिल्ली ही खा गई हमारे ब्लॉगिंग के!

विभूति" ने कहा…

बहुत शिकायत है तुमसे
पर कहूँ भी अब तुमसे कैसे?
जाने तुम मुझे सुन पाते हो कि नहीं?
उस जहां में मैं तुम्हारे साथ हूँ कि नहीं?
bhut hi acchi aur gahraayi hai rachna me...

***Punam*** ने कहा…

दूर होने पर भी किसी का स्पर्श महसूस करना..

बहुत कम लोगों कि अनुभूति होती है ऐसी..

बेहतरीन...

बस और कुछ नहीं..!!