भीड़
***
मुझमे इतनी भीड़ इकट्ठी हो गई है
कहाँ तलाशूँ ख़ुद को, कहाँ छुपाऊँ ख़ुद को?
हर वक़्त गूँजता भीड़ का कोलाहल है
कुछ सुन नहीं पाती, कुछ देख नहीं पाती।
भीड़ का हुजूम जैसे बढ़ता जा रहा है
दिल, दिमाग़ और आत्मा जैसे सब फट जाने को है।
सोते-जागते, उठते-बैठते हर जगह, हर वक़्त भीड़
क्या करूँ, कैसे रोकूँ?
***
मुझमे इतनी भीड़ इकट्ठी हो गई है
कहाँ तलाशूँ ख़ुद को, कहाँ छुपाऊँ ख़ुद को?
हर वक़्त गूँजता भीड़ का कोलाहल है
कुछ सुन नहीं पाती, कुछ देख नहीं पाती।
भीड़ का हुजूम जैसे बढ़ता जा रहा है
दिल, दिमाग़ और आत्मा जैसे सब फट जाने को है।
सोते-जागते, उठते-बैठते हर जगह, हर वक़्त भीड़
क्या करूँ, कैसे रोकूँ?
मुझको मुझसे ही छीन, मुझमें ही क़ैद कर गया
ये अखण्डित भीड़।
- जेन्नी शबनम (27.12.2008)
______________________
Bheed
***
kahaan talaashoon khud ko, kahaan chhupaoon khud ko?
Her waqt goonjta bheed ka kolaahal hai
kuchh sun nahi paati, kuchh dekh nahi paati.
Bheed ka hujum jaise badhta ja raha hai
dil, dimag aur aatma jaise sab phat jane ko hai.
sote-jaagte, uthte-baithte her jagah, her waqt bheed.
Kya karoon, kaise rokoon?
Kya karoon, kaise rokoon?
Mujhko mujhse hi chheen, mujhme hi kaid kar gaya
ye akhandit Bheed.
- Jenny Shabnam (27.12.2008)
_________________________
ye akhandit Bheed.
- Jenny Shabnam (27.12.2008)
_________________________
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें