शुक्रवार, 29 मई 2009

61. दफ़ना दो यारों (तुकान्त)

दफ़ना दो यारों

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चंदा की चाँदनी से रौशनी बिखरा गया कोई 
हसीन हुई है रात, सिर्फ़ इतना देखो यारों,
कौन बिखरा गया रंगीनी, ये न पूछो कोई 
रौशन हुई है रात, बस बहक जाओ यारों

सूरज की तपिश से, अगन लगा गया कोई 
दहक रही है रात, सिर्फ़ इतना देखो यारों,
कौन जला गया दामन, ये न पूछो कोई 
जल रही है रात, बस जश्न मनाओ यारों

आसमान की शून्यता से, तक़दीर भर गया कोई 
ख़ामोश हुई है रात, सिर्फ़ इतना देखो यारों,
कौन दे गया मातम, ये न पूछो कोई 
तन्हा हुई है रात, बस ज़रा रो लो यारों

अमावास की कालिमा से, अँधियारा फैला गया कोई 
डर गई है 'शब', सिर्फ़ इतना देखो यारों,
कौन कर गया है अँधेरा, ये न पूछो कोई 
मर गई है रात, बस उसे दफ़ना दो यारों


- जेन्नी शबनम (28. 5. 2009)
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शुक्रवार, 22 मई 2009

60. राजनीति

राजनीति

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तिश्नगी राजनीति की, बड़ी तिलिस्मी होती है
दफ़न मुर्दा जी पड़े (मिले जो कुर्सी), ऐसी ताक़त होती है  
भाड़ में जाए देश सेवा, स्व-सेवा (बस एक धर्म) होती है
भरता रहे भण्डार अपना (विदेश में), ऐसी तिजारत होती है 

इंसानों की ये चौथी जात (राजनेता), बड़ी रहस्यमयी है
कुर्ता-पायजामा (धोती), टोपी-अँगरखा, इनकी पहचान होती है 
इस सफ़ेद पहनावे की चाल, बड़ी ख़तरनाक, रक्तिम-काली है
कीचड़ उछालने और घात पहुँचाने में, इनको महारत हासिल होती है  

क़ौमी एकता की, इससे अच्छी मिसाल, दुनिया में नहीं होती
धर्म-जाति का फ़साद उखाड़ने में, कमरे के भीतर इनकी साँठ-गाँठ होती है  
दिख जाए कुर्सी का हसीन चेहरा, दल-बदल के तिकड़म में फिर देर नहीं होती
बेबस जनता फिर भी, संवैधानिक अधिकार (मतदान) के उपयोग के लिए लाचार होती है 

तिश्नगी राजनीति की, बड़ी तिलिस्मी होती है
ईमान बेच कमाए, ऐसी तिजारत होती है 

- जेन्नी शबनम (मई 22, 2009)
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गुरुवार, 21 मई 2009

59. ज़िन्दगी तमाम हो जाएगी

ज़िन्दगी तमाम हो जाएगी

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पल भर मिले
लम्हा भर थमे
क़दम भर भी तो साथ न चले,
यूँ साथ हम चले ही कब थे?
जो अब, न चलने का हुक्म देते हो 
एक दूसरे को, आख़िरी पल-सा देखते हुए
दो समीप समानांतर राहों पर चल दिए थे,
चाहा तो तुमने ही था सदा, मैंने नहीं,
फिर भी, इल्ज़ाम मुझे ही देते हो  
चलो यूँ ही सही, ये भी क़ुबूल है
मेरी व्यथा ही, तुम्हारा सुकून है,
बसर तो होनी है, हर हाल में हो जाएगी
सफ़र मुकम्मल न सही
ज़िन्दगी तमाम हो जाएगी 

- जेन्नी शबनम (21. 5. 2009)
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बुधवार, 20 मई 2009

58. कविता ख़ामोश हो गई है

कविता ख़ामोश हो गई है

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कविता पल-पल बनती है
मन पर शाया होती है,
उतार सकूँ काग़ज़ पर
रोशनाई की पहचान, अब मुझसे नहीं होती
मन की दशा का अब कैसा ज़िक्र
कविता ख़ामोश हो गई है

कविता कैसे लिखूँ ?
सफ़ेद रंगों से, सफ़ेद काग़ज़ पर, शब्द नहीं उतार पाती,
रंगों की भाषा कोई कैसे पहचाने
जब काग़ज़ रंगहीन दिखता हो
किसी के मन तक पहुँचा सकूँ
जाने क्यों, कभी-कभी मुमकिन नहीं होता

एक अनोखी दुनिया में
वक़्त को दफ़न कर आई हूँ,
खो आई हूँ कुछ अपना
जाने क्यों, अब ख़ुद को दग़ा देती हूँ
मन की उपज, वक़्त की कोख में दम तोड़ देती है
ज़िन्दगी और वक़्त का बही-खाता भी वहीं छोड़ आई हूँ

- जेन्नी शबनम (19. 5. 2009)
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बुधवार, 6 मई 2009

57. मेरी कविता में तुम ही तो हो

मेरी कविता में तुम ही तो हो

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तुम कहते, मेरी कविता में तुम नहीं होते हो
तुम नहीं, तो फिर, ये कौन होता है?
मेरी कविता तुमसे ही तो जन्मती है
मेरी कविता तुमसे ही तो सँवरती है

मेरी रगों में तुम उतरते हो, कविता जी जाती है
तुम मुझे थामते हो, कविता संबल पाती है
तुम मुझे गुदगुदाते हो, कविता हँस पड़ती है
तुम मुझे रुलाते हो, कविता भीग जाती है

मेरी कानों में तुम गुनगुनाते हो, कविता प्रेम-गीत गाती है
तुम मुझे दुलारते हो, कविता लजा जाती है
तुम मुझे आसमान देते हो, कविता नाचती फिरती है
तुम मुझे सजाते हो, कविता खिल-खिल जाती है

हो मेरी नींद सुहानी, तुम थपकी देते हो, कविता ख़्वाब बुनती है
तुम मुझे अधसोती रातों में, हौले से जगाते हो, कविता मंद-मंद मुस्काती है
तुम मुझसे दूर जाते हो, कविता की करुण पुकार गूँजती है
तुम जो न आओ, कविता गुमसुम उदास रहती है

हाँ! पहले तुम नहीं होते थे, कविता तुमसे पहले भी जीती थी
शायद तुम्हें ख़्वाबों में ढूँढ़ती, तुम्हारा इंतज़ार करती थी
हाँ! अब भी हर रोज़ तुम नहीं होते, कविता कभी-कभी शहर घूम आती है
शायद तुमसे मिलकर कविता इंसान बन गई है, दुनिया की वेदना में मसरूफ़ हो जाती है

- जेन्नी शबनम (6. 5. 2009)
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शुक्रवार, 1 मई 2009

56. आँखों में नमी तैरी है (क्षणिका)

आँखों में नमी तैरी है

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बदली घिर रही आसमान में, भादो तो आया नहीं
धुंध पसर रही आँगन में, माघ तो आया नहीं
मानो तपते जेठ की असह्य गरमी हो
घाम से मेरे मन की नरमी पिघली है
मानो सावन का मौसम बिलखता हो
आहत मन से मेरी आँखों में नमी तैरी है

- जेन्नी शबनम (8. 4. 2009)
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