अहल्या
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बल भी तुम्हारा
ठगी गई मैं, अपवित्र हुई मैं
शाप भी दिया तुमने
मुक्ति-पथ भी बताया तुमने
पाषाण बनाया मुझे
उद्धार का आश्वासन दिया मुझे
दाँव पर लगी मैं
इंतज़ार की व्यथा सही मैंने
प्रयोजन क्या था तुम्हारा?
मंशा क्या थी तुम्हारी?
इंसान को पाषाण बनाकर
पाषाण को इंसान बनाकर
शक्ति-परीक्षण, शक्ति-प्रदर्शन
महानता तुम्हारी, कर्तव्य तुम्हारा
बने ही रहे महान
कहलाते ही रहे महान
इन सब के बीच
मेरा अस्तित्व ?
मैं अहल्या
मैं कौन?
मैं ही क्यों?
तुम श्रद्धा के पात्र
तुम भक्ति तुल्य
और मैं?
- जेन्नी शबनम (14. 6. 2013)
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